विकिस्रोत:आज का पाठ/१५ सितम्बर
नाथ संप्रदाय रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास का एक अंश है जिसके दूसरे संस्करण का प्रकाशन काशी के नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा १९४१ ई. में किया गया था।
"गोरखनाथ के नाथपंथ की मूल भी बौद्धों की यही वज्रयान शाखा है। चौरासी सिद्धों में गोरखनाथ ( गोरक्षपा ) भी गिन लिए गए है । पर यह स्पष्ट है कि उन्होंने अपना मार्ग अलग कर लिया । योगियों की इस हिंदूशाखा ने वज्रयानियों के अश्लील और बीभत्स विधान से अपने को अलग रखा, यद्यपि शिव-शक्ति की भावना के कारण कुछ शृंगारमयी वाणी भी नाथपंथ के किसी किसी ग्रंथ ( जैसे, शक्तिसंगम तंत्र ) में मिलती है । गोरख ने पतंजलि के उच्च लक्ष्य, ईश्वर-प्राप्ति को लेकर हठयोग का प्रवर्तन किया । वज्रयानी सिद्धों का लीला-क्षेत्र भारत का पूरबी भाग था । गोरख ने अपने पंथ का प्रचार देश के पश्चिमी भागो मे--–राजपुताने और पंजाब में----किया । पंजाब में नमक के पहाड़ों के बीच बालनाथ योगी का स्थान बहुत दिनों तक प्रसिद्ध रहा । जायसी की पद्मावत में "बालनाथ का टीला" आया है ।..."(पूरा पढ़ें)