रामनाम/४३
"नअी दिल्ली, २९-१-४८
"चि॰ किशोरलाल,
"आज प्रार्थनाके बाद मैं अपना सारा समय पत्र लिखनेमे बिता रहा हू। शकरनजीकी लडकीके मरनेके समाचार यहा भेजकर तुमने ठीक किया। मैने अुनको पत्र लिख दिया है। मेरे वहा (सेवाग्राम) आनेकी बातको अभी अनिश्चित् समझना चाहिए। वहा ता॰ ३ से ता॰ १२ तक रहनेकी बात मैं चला रहा हू। अगर यह कहा जाय कि दिल्लीमें मैंने 'किया' है, तो प्रतिज्ञा-पालनके लिअे मेरा यहा रहना अब जरूरी नही है। अिसका आधार यहाके मेरे साथियो पर है। शायद कल निश्चय किया जा सकेगा। मेरे आनेका मकसद अेक तो अिस पर विचार करना है कि रचनात्मक काम करनेवाली सारी सस्थाये अेक हो सकती है या नहीं, और दूसरे, जमनालालकी पुण्यतिथि मनाना है। मुझमे ठीक शक्ति आ रही है। अिस बार किडनी और लिवर दोनो बिगडे है। मेरी दृष्टिसे यह रामनाममे मेरे विश्वासके कच्चेपनकी वजह से है।
दोनोको आशीर्वाद"
हरिजनसेवक, ८-२-१९४८
"राम! राम!"
जब गाधीजी प्रार्थना-सभा के बीचसे रस्सियोसे घिरे रास्तेमे चलने लगे, तो अुन्होंने प्रार्थनामे शामिल होनेवाले लोगोके नमस्कारोका जवाब देनेके लिअे लडकियोके कन्धोसे अपने हाथ अुठा लिए। अेकाअेक भीडमे से कोअी दाहिनी ओर से भीड को चीरता हुआ अुस रास्ते पर आया। छोटी मनुने यह सोचा कि वह आदमी बापूके पाव छूनेको आगे बढ रहा है। अिसलिअे अुसने अुसे अैसा करनेके लिअे झिडका, क्योकि प्रार्थनाके लिअे पहले ही देर हो चुकी थी। अुसने रास्तेमे आनेवाले आदमीका हाथ पकडकर अुसे रोकनेकी कोशिश की। लेकिन अुसने जोरसे मनुको धक्का दिया, जिससे अुसके हाथकी आश्रम-भजनावली, माला और बापू का पीकदान नीचे गिर गए। ज्यो ही वह बिखरी हुअी चीजो को उठाने के लिअे झुकी, वह आदमी बापूके सामने खडा हो गया—अितना नजदीक खडा था कि पिस्तोलसे निकली हुअी गोलीका खोल बादमे बापूके कपडोकी पर्तमे अुलझा हुआ मिला। सात कारतूसोवाली ऑटोमेटिक पिस्तोलसे जल्दी-जल्दी तीन गोलिया छूटी। पहली गोली नाभीसे ढाअी अिंच अूपर और मध्यरेखासे साढे तीन अिच दाहिनी तरफ पेटकी दाहिनी बाजूमे लगी। दूसरी गोली मध्यरेखासे अेक अिचकी दूरी पर दाहिनी तरफ घुसी और तीसरी गोली छातीकी दाहिनी तरफ लगी। पहली और दूसरी गोली शरीरको पार करके पीठ पर बाहर निकल आअी। तीसरी गोली अुनके फेफडेमे ही रुकी रही। पहले वारमे अुनका पाव, जो गोली लगनेके वक्त आगे बढ रहा था, नीचे आ गया। दूसरी गोली छोडी गअी, तब तक वे अपने पावो पर ही खडे थे। और अुसके बाद वे गिर गये। अुनके मुहसे आखिरी शब्द "राम! राम!" निकले।
हरिजनसेवक, १५-२-१९४८
प्रार्थना-प्रवचनोंमें से
रामनाम––अुसके नियम और अनुशासन
गाधीजीने कहा रामनाम आदमीको बीमारीमे मदद कर सकता है, लेकिन अुसके कुछ नियम और अनुशासन है। कोअी जरूरतसे ज्यादा खाना खाकर 'रामनाम' जपे और फिर भी अुसे पेटका दर्द हो, तो वह गाधीको दोष नही दे सकता। रामनामका अुचित ढगसे अुपयोग किया जाय तभी अुससे लाभ होता है। कोअी आदमी रामनाम जपे और लूटपाट मचावे, तो वह मोक्षकी आशा नहीं कर सकता। वह सिर्फ अुन्हींके लिअे है, जो आत्मशुद्धि के लिअे अुचित अनुशासन पालनेके लिअे तैयार है।
––बम्बअी, १५-३-४६
सबसे असरकारक इलाज
अुरुळीकाचनकी प्रार्थना-सभामे भाषण करते हुअे गाधीजी ने कहा—रामधुन शारीरिक और मानसिक बीमारियोंके लिअे सबसे असरकारक इलाज है। कोअी डॉक्टर या वैद्य दवा देकर बीमारी अच्छी करनेका वचन नही