रामनाम/३५
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कुदरतके नियम
स॰––आपके सुझावके मुताबिक रामनामका––सच्चिदानन्दके नामका ––मेरा जप चालू है। और अुससे मेरी क्षयकी बीमारीमे सुधार भी होने लगा है। यह सही है कि साथमे डॉक्टरी अिलाज भी चल रहा है। लेकिन आप कहते है कि युक्ताहार और मिताहारसे मनुष्य बीमारियोसे दूर रहकर अपनी अुमर बढा सकता है। मै तो पिछले २५ बरससे मिताहारी रहता आया हू, फिर भी आज अैसी बीमारीका भोग बना हुआ ह। अिसे क्या पहले जन्म या अिस जन्मकी कमनसीबी कहा जाय?
आप यह भी कहते है कि मनुष्य १२५ बरस जी सकता है। स्वर्गीय महादेवभाईकी आपको बडी जरूरत थी, यह जानते हुए भी भगवानने उन्हें अुठा लिया। युक्ताहारी और मिताहारी महादेवभाअी आपको अीश्वर-स्वरूप मानकर जीते थे, फिर भी वे खूनके दबावकी बीमारी (ब्लड-प्रेशर) के शिकार बनकर सदाके लिअे चल बसे। भगवानका अवतार माने जानेवाले रामकृष्ण परमहस क्षय जैसी कैन्सरकी खतरनाक बीमारीके शिकार होकर कैसे मर गये? वे भी कैन्सरका सामना क्यो न कर सके?
ज॰––मै तो स्वास्थ्यकी हिफाजतके जो नियम खुद जानता हू वही बताता हू। लेकिन मिताहार या युक्ताहार किसे माना जाय, यह हरअेक आदमीको जानना चाहिये। अिस बारेमे जिसने बहुतसा साहित्य पढा हो और बहुत विचार किया हो, वह खुद भी अिसे जान सकता है। लेकिन इसके यह मानी नही कि अैसा ज्ञान या जानकारी शुद्ध और पूरी है। अिसीलिअे कुछ लोग जिन्दगीको प्रयोगशाला कहते है। कई लोगोके तजरबोको अिकट्ठा करना चाहिये और अुनमे से जानने लायक बातको लेकर आगे बढना चाहिये। लेकिन अेसा करते हुए अगर कामयाबी न मिले, तो भी किसीको दोष नही दिया जा सकता। खुदको भी दोषी नही कहा जा सकता। नियम गलत है, यह कहनेकी भी एकदम हिम्मत न करनी चाहिये। लेकिन अगर हमारी बुद्धिको कोई नियम गलत मालूम हो, तो सही नियम कौनसा है यह बतानेकी ताकत अपनेमे पैदा करके उसका प्रचार करना चाहिये। आपकी क्षयकी बीमारीके कअी कारण हो सकते है। यह भी कौन कह सकता है कि पच महाभूतोका आपने जरूरतके मुताबिक अुपयोग किया या नही? अिसीलिअे जहा तक मै कुदरतके नियमोको जानता हू और अुन्हें सही मानता हू, वहा तक मै तो आपसे अही कहूगा कि कही-न-कही पच महाभूतोका अुपयोग करनेमे आपने भूल की है। महादेव और रामकृष्ण परमहसके बारेमे आपने जो शका अुठाअी, अुसका जवाब भी मेरी अुपरकी बातमे आ जाता है। कुदरतके नियमको गलत कहनेके बजाय यह कहना ज्यादा युक्तिसगत मालूम होता है कि अिन्होने भी कही-न-कही भूल की होगी। नियम कोई मेरा बनाया हुआ नहीं है, वह तो कुदरतका नियम है, कई अनुभवी लोगोने अिसे कहा है। और अिसी बातको मानकर मै चलनेकी कोशिश करता हू। आखिरकार मनुष्य अपूर्ण प्राणी है। और कोअी अपूर्ण मनुष्य इसे कैसे जान सकता है? डॉक्टर अिसे नही मानते। मानते भी है तो उसका दूसरा अर्थ करते है। इसका मुझ पर कोई असर नही होता। नियमकी अैसी ताअीद करने पर भी मेरे कहनेका यह मतलब नही होता, न निकाला जाना चाहिये कि इससे अूपरके किसी व्यक्तिका महत्त्व कम होता है।
हरिजनसेवक, ४-८-१९४६
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विश्वास-चिकित्सा[१] और रामनाम
एक दोस्त अुलाहना देते हुए लिखते है
"क्या आपका कुदरती अिलाज और विश्वास-चिकित्सा कुछ मिलती-जुलती चीजे है? बेशक मरीजको अिलाजमे श्रद्धा तो होनी चाहिये, लेकिन कअी अैसे अिलाज है जो सिर्फ विश्वाससे ही रोगीको अच्छा कर देते है, जैसे, माता (चेचक), पेटका दर्द वगैरा बीमारियोके। शायद आप जानते हो कि माताका, खासकर दक्षिणमे[२], 'कोई इलाज नही किया जाता। इसे सिर्फ ईश्वरकी माया-मान लिया जाता है।