रामनाम/२९
अिस पुण्य-नामका हृदयसे जप करनेके लिअे जो जरूरी शर्ते है, अुन्हे मै यहा नही दोहराअूगा।
चरकका प्रमाण अुन्ही लोगोके लिअे फायदेमन्द है, जो रामनाममे श्रद्धा और विश्वास रखते है। दूसरे लोगोको हक है कि वे अुस पर विचार न करे।
बच्चे गैर-जिम्मेदार होते है। बेशक रामनाम अुनके लिअे नही है। वे तो मा-बापकी दया पर जीनेवाले बेबस जीव है। अिससे हमे पता चलता है कि मा-बापकी बच्चोके और समाजके प्रति कितनी भारी जिम्मेदारी है। मै अुन मा-बापोको जानता हू, जिन्होने अपने बच्चोके रोगोके बारेमे लापरवाही की है, और यहा तक समझ लिया है कि हमारे रामनाम लेनेसे ही वे अच्छे हो जायगे।
आखिरमे, सब दवाअिया पच महाभूतोसे बनी है, यह दलील देना विचारोकी अराजकता जाहिर करता है। मैने सिर्फ अिसलिअे अुसकी तरफ, अिशारा किया है कि वह दूर हो जाय।
हरिजनसेवक, २८-४-१९४६
आयुर्वेद और कुदरती अुपचार
अीश्वरकी स्तुति और सदाचारका प्रचार हर तरहकी बीमारीको रोकनेका अच्छे-से-अच्छा और सस्ते-से-सस्ता अिलाज है। मुझे अिसमे जरा भी शक नही। अफसोस अिस बातका है कि वैद्य, हकीम और डॉक्टर अिस सस्ते अिलाजका अुपयोग ही नही करते। बल्कि हुआ यह है कि अुनकी किताबोमे अिस अिलाजकी कोई जगह ही नही रही, और कही है तो अुसने जन्तर-मन्तरकी शकल अख्तियार करके लोगोको वहमके कुअेमे ढकेला है। अीश्वरकी स्तुति या रामनामको वहमसे कोअी निस्बत नही। यह कुदरतका सुनहला कानून है। जो अिस पर अमल करता है, वह बीमारीसे बचा रहता है। जो अमल नही करता, वह बीमारियोसे घिरा रहता है। तन्दुरुस्त रहनेका जो कानून है, वही बीमार होनेके बाद बीमारीसे छुटकारा पानेका भी कानून है। सवाल यह होता है कि जो रामनाम जपता है और नेकचलनीसे रहता है, अुसको ब़ीमारी हो ही क्यो? सवाल ठीक ही है। आदमी स्वभावसे ही अपूर्ण है। समझदार आदमी पूर्ण बननेकी कोशिश करता है। लेकिन पूर्ण वह कभी बन नही पाता, अिसलिअे अनजाने गलतिया करता है। सदाचारमे अीश्वरके बनाये सभी कानून समा जाते है, लेकिन अुसके सब कानूनोको जाननेवाला सपूर्ण पुरुष हमारे पास नही है। मसलन्, अेक कानून यह है कि हदसे ज्यादा काम न किया जाय। लेकिन कौन बतावे कि यह हद कहा खतम होती है? यह चीज तो बीमार पडने पर ही मालूम होती है। मिताहार और युक्ताहार यानी कम और जरूरतके मुताबिक खाना कुदरतका दूसरा कानून है। कौन बतावे कि अिसकी हद कब लाघी जाती है? मैं कैसे जानू कि मेरे लिए युक्ताहार क्या है? अैसी तो कअी बाते सोची जा सकती है। अिस सबका निचोड यही है कि हर आदमीको अपना डॉक्टर खुद बनकर अपने अूपर लागू होनेवाले कानूनका पता लगा लेना चाहिये। जो अिसका पता लगा सकता है और उस पर अमल कर सकता है, वह १२५ बरस जीयेगा ही।
श्री वल्लभराम वैद्य पूछते है कि मामूली मसाले और पाक वगैरा चीजे कुदरती अिलाजमे शुमार की जा सकती है या नही? यह एक बडे कामका सवाल है। डॉक्टर दोस्तोका यह दावा है कि वे पूरी तरह कुदरती अिलाज करनेवाले है। क्योकि दवाये जितनी भी है, सब कुदरतने ही बनाअी है। डॉक्टर तो अुनकी नअी मिलावटे भर करते है। अिसमे बुरा क्या है? अिस तरह हर चीज पेश की जा सकती है। मैं तो यही कहूगा कि रामनामके सिवा जो कुछ भी किया जाता है, वह कुदरती अिलाजके खिलाफ है। अिस मध्यबिन्दुसे हम जितने दूर हटते है, अुतने ही असल चीजसे दूर जा पडते है। अिस तरह सोचते हुअे मै यह कहूगा कि पाच महाभूतोका असल अुपयोग कुदरती अिलाजकी हद है। अिससे आगे बढनेवाला वैद्य अपने अिर्द-गिर्द जो दवाये अुगती हो या अुगाअी जा सके, अुनका अिस्तेमाल सिर्फ लोगोके भलेके लिए करे, पैसे कमानेके लिए नही, तो वह भी कुदरती अिलाज करनेवाला कहला सकता है। ऐसे वैद्य आज कहा है? आज तो वे पैसा कमानेकी होडाहोडीमे पडे है। छानबीन और खोज-अीजाद कोअी करता नही। अुनके आलस और लोभकी वजहसे आयुर्वेद आज कगाल बन गया है।
हरिजनसेवक, १९-५-१९४६ २७
अुरुळीकांचनमे
पहले ही दिन गावके बाहर सामूहिक प्रार्थना की गअी और दूसरी जगहोकी तरह यहा भी सबके अेक साथ रामधुन गानेका रिवाज शुरू किया गया। प्रार्थनामे जो भजन गाया गया था, अुसका आधार लेकर गाधीजीने वहा आये हुअे गावके लोगोके सामने शरीरकी बीमारियोको मिटानेवाली बढियासे बढिया कुदरती दवाके रूपमे रामनाम पेश किया "अभी हमने जो भजन गाया, अुसमे भक्त कहता है 'हरि! तुम हरो जनकी पीर।' यानी हे भगवान तू अपने भक्तोका दुख दूर कर। अिसमे जिस दुखकी बात कही गअी है, वह सब तरहके दुखोसे सम्बन्ध रखती है। मन या तनकी किसी खास बीमारीकी चर्चा अिसमे नही है।" फिर गाधीजीने लोगोको कुदरती अिलाजकी सफलताके नियम बताये "रामनामके प्रभावका आधार अिस बात पर है कि आपकी अुसमे सजीव श्रद्धा है या नही। अगर आप गुस्सा करते है, सिर्फ शरीरकी हिफाजतके लिअे नहीं, बल्कि मौज-शौकके लिअे खाते और सोते है, तो समझिये कि आप रामनामका सच्चा अर्थ नही जानते। अिस तरह जो रामनाम जपा जायगा, अुसमे सिर्फ होठ हिलेगे, दिल पर अुसका कोअी असर न होगा। रामनामका फल पानेके लिअे आपको जपते समय अुसमे लीन हो जाना चाहिये, और अुसका प्रभाव आपके जीवनके तमाम कामोमे दिखाई पडना चाहिये।"
पहले बीमार
दूसरे दिन सुबहसे बीमार आने लगे। कोअी ३० होगे। गाधीजीने अुनमे से पाच या छहको देखा और अुन सबकी बीमारीके प्रकारको देखकर थोडे हेरफेरके साथ सबको अेकसे ही अिलाज सुझाये। मसलन्, रामनामका जप, सूर्यस्नान, बदनको जोरसे रगडना या घिसना, कटिस्नान, दूध, छाछ, फल, फलोका रस और पीनेके लिअे साफ और ताजा पानी। शामकी प्रार्थना-सभामे अुन्होने अपने विषयको समझाते हुझे कहा "सचमुच यह पाया गया है कि मन और शरीरकी तमाम आधि-व्याधियोका एक ही समान कारण है। अिसलिअे