रामनाम
मोहनदास करमचंद गाँधी

अहमदाबाद - १४: नवजीवन प्रकाशन मन्दिर, पृष्ठ ३० से – ३२ तक

 
१७
मेरा राम कौन?

आप लोग अुस सर्वशक्तिमान भगवानकी गुलामी मजूर करे। अिससे कोअी मतलब नहीं कि आप अुसे किस नामसे पुकारते है। तब आप किसी अिन्सान या अिन्सानोके सामने घुटने नही टेकेगे। यह कहना नादानी है कि मैं राम—महज अेक आदमी—को भगवानके साथ मिलाता हू। मैने कअी बार खुलासा किया है कि मेरा राम खुद भगवान ही है। वह पहले था, आज भी मौजूद है, आगे भी हमेशा रहेगा। न कभी वह पैदा हुआ, न किसीने अुसे बनाया। अिसलिए आप जुदा-जुदा धर्मोको बरदाश्त करे और अुनकी अिज्जत करे। मै खुद मूर्तियोको नही मानता, मगर मै मूर्तिपूजकोकी अुतनी ही अिज्जत करता हू, जितनी औरोकी। जो लोग मूर्तियोको पूजते है, वे भी अुसी अेक भगवानको पूजते है, जो हर जगह है, जो अुगलि से कटे हुअे नाखूनमे भी है। मेरे अैसे मुसलमान दोस्त है, जिनके नाम रहीम, रहमान, करीम है। जब मै अुन्हे रहीम, करीम और रहमान कहकर पुकारता हू, तो क्या मै अुन्हे खुदा मान लेता हू?

हरिजनसेवक, २-६-१९४६

१८
अीश्वर कौन और कहां है?

ब्रह्मचर्य क्या है, यह बताते हुअे मैने लिखा था कि ब्रह्म यानी अीश्वर तक पहुचनेका जो आचार होना चाहिये, वह ब्रह्मचर्य है। लेकिन अितना जान लेनेसे अीश्वरके रूपका पता नहीं चलता। अगर अुसका ठीक पता चल जाय, तो हम अीश्वरकी तरफ जानेका ठीक रास्ता भी जान सकते है। अीश्वर मनुष्य नही है। अिसलिअे वह किसी मनुष्यमे अुतरता है या अवतार लेता है, अैसा कहे तो यह पूरा सत्य नही है। अेक तरह से अीश्वर किसी खास मनुष्यमे अुतरता है, ऐसा कहनेका मतलब सिर्फ अितना ही हो सकता है कि वह मनुष्य अीश्वरके ज्यादा नजदीक है। अुसमे हमे ज्यादा अीश्वरपन दिखाअी देता है। अीश्वर तो सब जगह हाजिर है। वह सबमे मौजूद है। अिसलिअे हम सब अीश्वरके अवतार है। मगर अैसा कहनेसे कोअी मतलब हल नही होता। राम, कृष्ण वगैराको हम अवतार कहते है, क्योकि अुनमे लोगोने अीश्वरके गुण देखे। आखिर तो राम, कृष्ण वगैरा मनुष्यकी खयाली दुनियामे बसते है और अुसकी खयाली तसवीरे ही है। अितिहासमे अैसे लोग हो गए या नही, अिसके साथ अिन कल्पनाकी तसवीरोका कोअी सम्बन्ध नही। कअी बार हम अितिहासके राम और कृष्णको ढूढते-ढूढते मुश्किलोमे पड़ जाते है और हमे कअी तरहकी दलीलोका सहारा लेना पड़ता है।

सच बात तो यह है कि अीश्वर अेक शक्ति है, तत्त्व है, शुद्ध चैतन्य है, सब जगह मौजूद है। मगर हैरानीकी बात यह है कि अैसा होते हुअे भी सबको अुसका सहारा या फायदा नही मिलता, या यो कहे कि सब अुसका सहारा पा नही सकते।

बिजली अेक बड़ी ताकत है। मगर सब अुससे फायदा नही अुठा सकते। अुसे पैदा करनेका अटल कानून है। अुसके मुताबिक काम किया जाय, तभी बिजली पैदा की जा सकती है। बिजली जड है, बेजान चीज है। अुसके अिस्तेमालका कायदा चेतन मनुष्य मेहनत करके जान सकता है। जिस चेतनामय बड़ी भारी शक्तिको हम अीश्वर कहते है, अुसके अिस्तेमालका भी नियम तो है ही। लेकिन यह चीज बिल्कुल साफ है कि अुस नियमको ढूढनेके लिए बहुत ज्यादा मेहनतकी जरूरत है। अेक शब्दमे अुस नियमका नाम है ब्रह्मचर्य। ब्रह्मचर्यको पालनेका सीधा रास्ता रामनाम है। यह मै अपने अनुभवसे कह सकता हू। तुलसीदास जैसे भक्त और अृषि-मुनियोने तो वह रास्ता बताया ही है। मेरे अनुभवका कोअी जरूरतसे ज्यादा मतलब न निकाले। रामनाम सब जगह मौजूद रहनेवाली रामबाण दवा है, यह शायद मैने पहले-पहल अुरुळीकाचनमे ही साफ-साफ जाना था। जो अुसका पूरा अुपयोग जानता है, अुसे जगतमे कम-से-कम बाहरी काम करना पड़ता है। फिर भी अुसका काम बडे-से-बडा होता है।

अिस तरह विचार करते हुअे मै कहता हू कि ब्रह्मचर्यकी रक्षाके जो नियम माने जाते है, वे तो खेल ही है। सच्ची और अमर रक्षा तो रामनाम ही है। राम जब जीभसे अुतरकर हृदयमे बस जाता है, तभी अुसका पूरा चमत्कार दिखलाअी देता है। यह अचूक साधन पानेके लिअे अेकादश व्रत तो है ही। मगर कअी साधन अैसे होते है कि अुनमे से कौनसा साधन और कौनसा साध्य है, यह फर्क करना मुश्किल हो जाता है। अेकादश व्रतोंमें से सत्यको ही ले, तो पूछा जा सकता है कि क्या सत्य साधन है और राम साध्य? या राम साधन है और सत्य साध्य है?

मगर मै सीधी बात पर आअू। ब्रह्मचर्यका आजका माना हुआ अर्थ ले, तो वह है—जननेद्रिय पर काबू पाना। अिस सयमका सुनहला रास्ता और अुसकी अमर रक्षा रामनाम ही है।

हरिजनसेवक, २२-६-१९४७

१९
रामनाम और कुदरती अिलाज

दूसरी सब चीजोकी तरह मेरी कुदरती अिलाजकी कल्पनाने भी धीरे-धीरे विकास किया है। बरसोसे मेरा यह विश्वास रहा है कि जो मनुष्य अपनेमे ईश्वरका अस्तित्त्व अनुभव करता है, और अिस तरह विकाररहित स्थिति प्राप्त कर चुकता है, वह लम्बे जीवनके रास्तेमे आनेवाली सारी कठिनाअियोको जीत सकता है। मैने जो देखा और धर्मशास्त्रोमे पढ़ा है, अुसके आधार पर मै अिस नतीजे पर पहुचा हू कि जब मनुष्यमे अुस अदृश्य शक्तिके प्रति पूर्ण जीवित श्रद्धा पैदा हो जाती है, तब अुसके शरीरमे भीतरी परिवर्तन होता है। लेकिन यह सिर्फ अिच्छा करने मात्रसे नहीं हो जाता। अिसके लिअे हमेशा सावधान रहने और अभ्यास करनेकी जरूरत रहती है। दोनोंके होते हुअे भी अीश्वर-कृपा न हो, तो मानव-प्रयत्न व्यर्थ जाता है।

प्रेस रिपोर्ट, १२-६-१९४५