रामनाम
मोहनदास करमचंद गाँधी

अहमदाबाद - १४: नवजीवन प्रकाशन मन्दिर, पृष्ठ २३ से – २४ तक

 
१०
यकीनी अिमदाद

अिसमे कोअी शक नही कि रामनाम सबसे ज्यादा यकीनी अिमदाद है। अगर दिलसे अुसका जप किया जाय, तो वह हरअेक बुरे खयालको तुरन्त दूर कर सकता है। और जब बुरा खयाल मिट गया, तो अुसका बुरा असर होना सभव नही। अगर मन कमजोर है, तो बाहरकी सब अिमदाद बेकार है, और मन पवित्र है, तो वह सब गैरजरूरी है। अिसका यह मतलब हरगिज न समझना चाहिये कि अेक पवित्र मनवाला आदमी सब तरहकी छूट लेते हुअे भी बेदाग बचा रह सकता है। अैसा आदमी खुद ही अपने साथ कोअी छूट न लेगा। अुसका सारा जीवन ही अुसकी भीतरी पवित्रताका सच्चा सबूत होगा। गीतामे ठीक ही कहा है कि आदमीका मन ही अुसे बनाता है और वही अुसे बिगाडता भी है। मिल्टन जब यह कहता है कि "मनुष्यका मन ही सब कुछ है, वही स्वर्गको नरक और नरकको स्वर्ग बना देता है", तो वह भी अिसी विचारकी व्याख्या करता है।

हरिजनसेवक, १२-५-१९४६

११
रामनामका मजाक

स॰—बनारसका रामनाम बैक, और रामनाम छपा कपडा पहनना, या शरीर पर रामनाम लिखकर घूमना रामनामका मजाक और हमारा पतन नही तो क्या है? अैसी हालतमे सारे रोगोके रामबाण अिलाजके रूपमे रामनामका प्रचार करके क्या आप अिन ढोगियोके हाथमे पत्थर नही दे रहे है? अन्तर-प्रेरणासे निकला हुआ रामनाम ही रामबाण हो सकता है। और मै मानता हू कि अैसी अन्तर-प्रेरणा सच्ची धार्मिक शिक्षासे ही मिलेगी।

ज॰—आपने ठीक कहा है। आजकल हमारे अन्दर अितना वहम फैला हुआ है और अितना दम्भ चलता है कि सही चीज करनेमे भी डरना पडता है। लेकिन अिस तरह डरते रहनेसे तो सत्यको भी छिपाना पड़ सकता है। अिसलिअे सुनहला कानून तो यही है कि जिसे हम सही समझे, अुसे निडर होकर करे। दम्भ और झूठ तो जगतमे चलता ही रहेगा। हमारे सही चीज करनेसे वह कुछ कम ही होगा, बढ कभी नहीं सकता। यह ध्यान रहे कि जब चारो ओर झूठ चलता हो, तब हम भी अुसीमे फसकर अपनेको धोखा न दे। अपनी शिथिलता और अज्ञानके कारण हम अनजाने भी अैसी गलती न करे। हर हालतमे सावधान रहना तो हमारा कर्तव्य है ही। सत्यका पुजारी दूसरा कुछ कर ही नही सकता। रामनाम जैसी रामबाण औषध लेनेमे सतत जागति न हो, तो रामनाम व्यर्थ जाय और हम बहुतसे वहमोमे अेक और वहम बढा दे।

हरिजनसेवक, २-६-१९४६

१२
रामनाम और जंतर-मंतर

मै निडर होकर कह सकता हू कि मेरे रामनामका जतर-मतरसे कोअी वास्ता नही। मैने कहा है कि रामनाम अथवा किसी भी रूपमे हृदयसे अीश्वरका नाम लेना अेक महान शक्तिका सहारा लेना है। वह शक्ति जो कर सकती है, सो दूसरी कोअी शक्ति नही कर सकती। अुसके मुकाबले अणुबम भी कोअी चीज नही। अुससे सब दर्द दूर होते है। हा, यह सही है कि हृदयसे नाम लेनेकी बात कहना आसान है, करना कठिन है। वह कितना ही कठिन क्यो न हो, फिर भी वही सर्वोपरि वस्तु है।

हरिजनसेवक, १३-१०-१९४६