राबिन्सन-क्रूसो/फ़्राइडे की मृत्यु

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फ़्राइडे की मृत्यु

मैं अपने टापू का सुप्रबन्ध कर के बिदा हुआ। तीन दिन समुद्रयात्रा करने के पीछे नाविको ने खूब ज़ोर से चिल्ला कर कहा "पूरब ओर स्थल दिखाई दे रहा है।" साँझ होने के पहले ही स्थल-भाग का किनारा देखते ही देखते घोर कृष्णवर्ण हो उठा। किन्तु ऐसा क्यों हुआ, इसका कुछ कारण हम लोग समझ न सके। जहाज़ का मेट मस्तूल के ऊपर चढ़कर दूरबीन से देखकर चिल्ला उठा "सैन्य-दल, सैन्य-दल।" मैं उसके कथन का अविश्वास कर उसकी बात काटने लगा। तब वह बोला-आप मेरी बात का विश्वास कीजिए। डोगियों पर करीब एक हज़ार सैनिक-लवार हो हमारी ओर दौड़े चले आ रहे हैं।

यह सुन कर मैं और जहाज़ का कप्तान मेरा भतीजा बड़े ही अचम्भे में पड़ गया। वह बेचारा कभी इतनी दूर न आया था। उस पर मेरे टापू में जाकर असभ्यों की भयङ्कर वृत्ति की कहानी सुन कर उसे अत्यन्त भय हुआ था। उसने दो तीन बार मुझसे कहा-"अब की बार वे लोग आकर हम लोगों को ज़रूर मार कर खा डालेंगे।" मेरा भी [ ३१९ ]मन स्थिर न था। कारण यह कि हवा रुक गई थी और समुद्र की तीक्ष्ण तरङ्ग हम लोगों को हठात् किनारे ही की ओर खींचे लिये जा रही थी। तथापि मैं सबको साहस देने लगा। ज्योंही असभ्य हमारे समीप पहुँचे त्योंही मैंने लंगर डालने का हुक्म दिया।

वे लोग बात की बात में हमारे जहाज़ के पास आ गये। मैंने जहाज़ के पालों को उतारने और लंगर डालने की आज्ञा दी। जहाज़ के सामने और पीछे एक एक नाव उतार कर उन पर कतिपय सशस्त्र नाविकों को इसलिए सवार किया कि यदि असभ्य लोग जहाज़ में आग लगाने की चेष्टा करेंगे तो नाविक लोग बालटी के द्वारा समुद्र का जल सींच कर आग बुझा देंगे।

किन्तु असभ्य लोग हम लोगों के समीप आकर और एक बड़ा सा जहाज देख कर एकदम भौंचक्का हो रहे। ऐसा प्रकाण्ड जहाज़ तो उन लोगों ने अपने बाप की ज़िन्दगी में आज तक कभी न देखा था। हम लोगों के साथ वे कैसा व्यवहार करें, यह उन लोगों की समझ में न आता था। तथापि वे लोग जान पर खेल कर एक बार जहाज के बिलकुल पास आये और हमारे जहाज को चारों ओर घूम कर देखना चाहा।

मैंने नाविकों से कहा-"ख़बरदार! उन लोगों को हमारे जहाज से भिड़ने मत देना।" यह हुक्म पाकर नाविकों ने उन असभ्यों को हाथ का इशारा देकर दूर रहने को कहा। उस इशारे का मतलब समझ कर वे लोग अपनी डोंगियों को हटा ले गये। फिर हमारे जहाज़ियों को लक्ष्य करके उन लोगों ने एक [ ३२० ] साथ पचास तीर छोड़े। इससे हमारे जहाज़ का एक नाविक पूरे तौर से घायल हुआ। मैंने कई एक काठ के तख्ते नावों पर उतरवा दिये। नाविकगण तख्ते खड़े करके उनकी आड़ में छिप रहे। अब मैंने उन्हें बन्दूक़ चलाने की मनाही कर दी।

आध घंटे तक इतस्ततः करने के बाद वे लोग झुण्ड बाँधकर जहाज़ के पश्चाद्भाग के खूब नज़दीक आ गये। तब हम लोगों ने उन्हें स्पष्ट रूप से देखा। उनमें कितने ही मेरे पुराने परिचित थे। द्वीप-निवास के समय कई बार उन लोगों के साथ मेरा मुकाबला हो चुका था। मैंने अपनी तोपों को ठीक करके फ़्राइडे को डेक के ऊपर इसलिए भेज दिया कि वह अपनी देशभाषा में अपने देशवासियों से उनके आगमन का कारण पूछे। फ़्राइडे ने खूब उच्चवर से पूछा, किन्तु असभ्यों ने फ़्राइडे की बात का कुछ जवाब न देकर हम लोगों की ओर पीठ करके और सामने की ओर झुककर हम लोगों को पश्चाद्भाग दिखलाया। ऐसा बीभत्स व्यवहार हम लोगों के प्रति अपमान या युद्ध के लिए सन्नद्ध होने का संकेत है, यह मैं न समझ सका। किन्तु उन लोगों को इस तरह करते देख फ़्राइडे ने चिल्लाकर कहा,-"देखो देखो ये लोग अभी बाण बरसावेंगे।" उसकी बात पूरी होते न होते टिड्डीदल की तरह सैकड़ो बाण एक साथ उड़कर जहाज़ पर आ गिरे और कई बाण मुझे अत्यन्त दुख देकर फ्राइडे के शरीर में चुभ गये। तीन बाणों की सख्त चोट लगने से फ्राइडे मर गया। उसके पार्श्ववर्ती और भी तीन व्यक्ति मरे । वे असभ्य होकर भी ऐसे अचूक तीरन्दाज़ थे।

मैंने अपने पुराने भृत्य की मृत्यु से अत्यन्त क्रुद्ध हो कर एक साथ नौ तोपें सीधी कर असभ्यों पर गोले बरसाने की आज्ञा [ चित्र ]

तीन बाणों की सख़्त चोट लगने से फ़्राइडे मर गया।—पृ॰ ३२०

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दी। एक साथ नौ तोपों का भयङ्कर शब्द उन लोगों के पुरुषों ने भी आज तक कभी न सुना था। उनकी तीन चार नावें एक दम भर में उलट गईं। फ़्राइडे मेरा मित्र, नौकर, मन्त्री, साथी और पुत्र सब कुछ था। उस की मृत्यु से मैं ऐसा क्रुद्ध हुआ कि वे असभ्य सब के सब मारे जाकर उनकी सब नावें नष्ट-भ्रष्ट हो जलमग्न हो जातीं तो कदाचित् मेरे हृदय का ताप कुछ शान्त होता।

एक ही साथ उतनी तोपों की आवाज़ होने से असभ्यदल में बड़ी खलबली मच गई। नावों में परस्पर टक्कर लगने से तेरह-चौदह नावें टुकड़े टुकड़े हो गईं और उन के सवार समुद्र में गिरकर तैरने लगे। और लोग अपनी अपनी नाव खेकर बड़े वेग से भाग चले। उन लोगों ने कुछ भी खबर नहीं ली कि हमारे नौकाहीन साथियों की क्या दशा हुई। जलमग्न लोगों में प्रायः सभी मर मिट, केवल एक व्यक्ति को हमारे जहाज़ वालों ने जहाज़ पर खींच कर बचा लिया था। उस दिन सन्ध्या समय खूब तेज़ हवा बहने लगी। तब हम लोग पाल तान कर ब्रेज़िल की तरफ़ रवाना हुए। वह बन्दी असभ्य ऐसा दुखी था कि न कुछ खाता था और न कुछ बोलता था। मैंने देखा कि वह उपवास करते ही करते मर जायगा। तब मैंने उसे जहाज़ की डोंगी में उतार कर इशारे से कहा-"कुछ कहो तो कहो, नहीं तो तुझे अभी समुद्र में फेंक दूंगा।" तब भी वह कुछ न बोला। उसकी यह असभ्यता देख नाविकों ने धर पकड़ कर उसे पानी में गिरा दिया। अब वह जल पर तृण की भाँति तैरता हुआ जहाज़ के पीछे पीछे आने लगा और अपनी मातृभाषा में हम लोगों से न मालूम क्या कहने लगा। इसके बाद वह फिर जहाज़ पर [ ३२२ ] चढ़ा लिया गया। अब से वह कुछ कुछ हम लोगों की बात मानने लगा।

जहाज़ मज़े में जा रहा है। किन्तु प्रिय सेवक फ़्राइडे के वियोग से मेरे चित्त में चैन नहीं। मैंने बड़ी श्रद्धा और सम्मान के साथ समुद्र में उसको प्रवाह किया। उसके मृतशरीर को भली भाँति कपड़े से ढँक कर और उसे एक बक्स में बन्द कर समुद्र में डाल दिया। उसके सम्मानार्थ ग्यारह बार तोप दागी गई। इसके बाद सभी चुप हो रहे। मेरे परम विश्वासी, प्रीति-भाजन, स्वामिभक्त, कर्तव्यनिष्ठ, निश्छल, सत्यशील और सहृदय भृत्य की जीवन-लीला समाप्त हुई। ऐसा सत्सेवक सौभाग्य से ही किसीको मिलता है। आज बार बार मैं अपने मन में यों कहने लगा

बहुत दिनों में भ्रम़ण कर लौटे हम निज गेह।
हाय हमारा भृत्य वह चला गया तज देह॥