राबिन्सन-क्रूसो/द्वीप में पुनरागमन

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द्वीप में पुनरागमन

हम लोग रास्ते में तूफ़ान और बादल के साथ लड़ते-झगड़ते १६९५ ईसवी की १० एप्रिल को अपने पुराने आवासद्वीप के निकट पहुँचे। ढूँढ़ने पर बड़ी कठिनता से अपने पूर्वपरिचित मित्रों से भेट हुई। द्वीप के दक्खिन ओर अपने घर के पास ही, खाड़ी के सामने, हमने जहाज़ का लंगर डाला।

मैंने फ़्राइडे से पुकार कर कहा-"तुम बतला सकते हो कि वह कौन सी जगह है?" वह उस ओर देखते ही ताली बजा कर नाच उठा, "हाँ हाँ, यह वही जगह है" यह कह कर वह पागल की भाँति हाथ-मुँह मटकाने लगा। वह जहाज़ से कूद कर, समुद्र तैर कर ही, किनारे जाने को प्रस्तुत हुआ। किन्तु हमने उसे रोक रक्खा।

मैंने फ़्राइडे से पूछा-"अच्छा बतलाओ तो, तुम क्या सोचते हो। यहाँ हम लोग किसीको देख पावेंगे या नहीं? क्या तुम्हारे बाप से भेंट होगी?" वह कुछ देर चित्रवत् [ २६८ ] चुपचाप खड़ा रहा । इसके बाद उसकी आँँखों से झर झर आँँसू गिरने लगे ।

मैंने पूछा-फ्राइडे, क्या तुम बाप के साथ भेंट होने की बात सुन कर रोने लगे ?

फ्रा़इडे रुद्ध-कराठ से बोला —नहीं नहीं, अब बाप से मेरी भेंट न होगी ।

मैं—यह तुमने कैसे जाना ?

फ्रा़इडे—बह बूढ़ा आदमी कभी का मर गया होगा।

मैं-"पागल कहीं का, मनुष्य के जीवन-मरण का कोई निश्चय नहीं कि कौन कब तक जियेगा और कौन कब मरेगा। मान लो तुम्हारे बाप से यहाँ भेट न हो तो न सही पर किसी से तो भेट होगी ।" फ्रा़इडे ने मेरे किले के पास के पहाड़ की ओर दिखा कर कहा –"हाँ, हाँ, वह देखो, लोगों का झुंड है । वे खड़े होकर हम लोगों की ओर देख रहे हैं।" पर मैंने किसी को नहीं देखा । फिर भी उसीकी बात पर विश्वास करके मैंने हुक्म दिया कि झण्डी उड़ा कर तीन बार तोप की आवाज़ की जाय ! आध घंटे के बाद मैंने खाड़ी के पास धुवाँ उठते देखा। तब यहाँ की बस्ती के सम्बन्ध में कोई सन्देह नहीं रहा । मैंने उसी समय एक नाव जहाज़ से पानी में उतारने को कहा। सोलह हथियारबन्द नाविक, फ्रांसवासी पुरोहित और फ्रा़इडे को साथ ले मैं नाव पर सवार हुआ । हम लोग शत्रु नहीं, बन्धु हैं,- यह जताने के लिए एक सादी पताका उड़ाते चले ।

हम लोग ज्वार के समय में रवाना हुए थे । इससे नाव एकदम खाड़ी के भीतर पहुँच गई । मेरी दृष्टि सब के [ २६९ ] पहले उस स्पेनियर्ड के ऊपर पड़ी जिसको मैंने आसन्नमृत्यु से बचाया था। उसको देखते ही मैंने पहचान लिया। मैंने कहा-"नाव से किसी के उतरने की ज़रूरत नहीं, मैं अकेला ही पहले जाऊँगा।" किन्तु फ़्राइडे को रोक रखने की सामर्थ्य किस की थी। वह दूर ही से अपने बाप को देख कर व्यग्र हो उठा था। हम लोग उतनी दूर से कुछ भी न देख सके थे। यदि उसे मैं नाव से उतरने न देता तो वह पानी में ही कूद पड़ता। वह सूखे में पैर रखते ही तीर की तरह सन्न से अपने बाप के पास दौड़ गया। पिता को देख कर पहली बार उसके मन में जो आनन्द का उद्रेक होता था, वह देख कर आँसू रोक सके, ऐसा कठिन मनुष्य संसार में बिरला ही होगा। उसने बड़े ही विनीत-भाव से पिता को प्रणाम किया और बार बार उनके पैरों को चूमा। उसने बड़ी देर तक अपने पिता के मुँह की ओर स्थिर-दृष्टि से देखा। लोग जैसे बारीक नज़र से सुन्दर से सुन्दर चित्र को देखते हैं वैसे ही वह बड़ी स्नेह-दृष्टि से बार बार अपने पिता को देखने लगा मानो उसे अपने पिता को बारंबार देख कर भी तृप्ति न होती थी। इसके बाद उसने फिर पिता के पैर चूमे और उन्हें गले से लगाया। मारे उमङ्ग के वह कभी तो अपने पिता का हाथ पकड़ कर समुद्र के किनारे किनारे घूमता था और जिन नये देशों को देख आया है उन देशों के कितने ही वृत्तान्त सुनाता था; और कभी दौड़ कर नाव से विविध खाद्य लाकर इन्हें खिलाता था। यदि ऐसी अपूर्व सुन्दर पितृभक्ति सभी को होती तो यह संसार वर्ग के सदृश पवित्र और अतिरम्य हो जाता। [ २७० ]मैं नाव से उतर कर स्पेनियर्ड के पास गया। वह पहले मुझे पहचान न सका। कारण यह कि स्वप्न में भी उसका यह खयाल न था कि मैं फिर यहाँ आऊँगा। मैंने उससे कहा-"महाशय, आपने मुझको पहचाना नहीं?" मेरा कण्ठस्वर पहचान कर वह कुछ न बोला। वह अपने हाथ की बन्दूक दूसरे को देकर बाँह पसार कर दौड़ा और स्पेनिश-भाषा में न मालूम क्या कहता हुआ मेरे गले से लिपट गया। फिर उसने कहा-"मैंने आपको पहले न पहचान कर बड़ा अपराध किया है। आप मेरे प्राणदाता मित्र हैं।" इस प्रकार प्रीतिपगी बातें कह कर उसने मुझसे पूछा-"आप एक बार अपने पुराने घर चलेंगे या नहीं?" मैं उसके साथ वहाँ गया। उसने किले के रास्ते में ऐसे घने पेड़ों को लगा कर पथ संकीर्ण कर दिया है कि किले के भीतर अपरिचित लोगों के जाने की संभावना न थी।

स्पेनियर्ड ने स्वस्थ होकर मेरे अनुपस्थितकाल के दस वर्ष का इतिहास मुझसे कह सुनाया। वह संक्षेप से मैं यहाँ लिखता हूँ-

स्पेनियर्ड कहने लगा-"जब मैंने आकर देखा कि आप चले गये तब मुझे बड़ा ही दुःख हुआ! किन्तु जब मैंने सुना कि आप का उद्धार यहाँ से बड़ी आसानी से होगया है तब मुझे हर्ष भी हुआ। किन्तु आप जिन तीन बदमाशों को यहाँ छोड़ गये हैं वे बड़े ही नृशंस हैं। उन्होंने हम लोगों को मार डालने की चेष्टा की थी। तब हम लोगों ने लाचार हो कर उनसे हथियार ले लिये और उन्हें अपने अधीन कर लिया है। इससे संभव है कि आप हम लोगों पर कुछ अप्रसन्न हो।" मैंने [ २७१ ] कहा-नहीं नहीं, मैं न समझता था कि वे लोग ऐसे छटे बदमाश हैं। यदि मेरे रहते आप वहाँ से लौट आते तो भी मैं उन लोगों को आप के अधीन करके ही जाता। आपने जो उन लोगों पर प्रभुत्व स्थापित किया है इससे मैं प्रसन्न हूँ।

मैं उससे इस प्रकार कही रहा था कि और ग्यारह स्पेनियर्ड वहाँ आ गये। किन्तु उनकी तत्कालीन पोशाक देख कर उनकी जाति का निर्णय करना कठिन था। स्पेनियर्ड कप्तान ने मुझ से उनका और उनसे मेरा परिचय कराया। तब वे लोग बड़े विनीत-भाव से एक एक कर मेरे पास आये और भक्ति-पूर्वक मेरा अभिवादन किया। मानो मैं ही उस द्वीप का सम्राट् था, और वे लोग अन्यदेशीय दूत थे। मैं उन लोगों को शिष्ट व्यवहार देख कर मुग्ध हुआ।