राबिन्सन-क्रूसो/चीन में क्रूसो

राबिनसन-क्रूसो
डैनियल डीफो, अनुवादक जनार्दन झा

प्रयाग: इंडियन प्रेस, लिमिटेड, पृष्ठ ३६६ से – ३६८ तक

 

चीन में क्रूसो

अभी मैं चीन में हूँ। देश से कितनी दूर आ गया हूँ! मेरा देश पृथिवी के एक प्रान्त में है, और पाया हूँ दूसरे प्रान्त में। अपने देश लौट जाने का कोई सुयोग या संभावना अभी देखने में नहीं आती। चार महीने बाद यहाँ एक और मेला होगा। तब एक नाव मिल जायगी तो ख़रीद लूँगा और भारत को लौट जाऊँगा। इसके पहले लौटने का कोई सुयोग देखने में न आया। उस मेले के अवसर पर यदि कोई यूरोपीय जहाज़ भाग्य से मिल जाय तब तो सब भाँति अच्छा ही होगा। अब बदकार जहाज़ चला गया, किसी का कुछ भय नहीं रहा। इसी आशा से हम लोग वहाँ ठहर गये।

यहाँ ठहरने से धीरे धीरे कई एक यूरोपीय पादरियों से परिचय हो गया। हम लोग उनके साथ चीन देश देखने के लिए घूमने लगे। इस देश में अब भी कुछ विशेष उन्नति नहीं हुई। प्रायः सभी लोग जाहिल हैं। ग्रहण होने से वे लोग समझते हैं कि राहु नामक एक दैत्य सूर्य को निगल जाता है, इसलिए दैत्य को भय दिखाकर भगाने के लिए सभी लोग मिलकर घड़ी-घंटा बजाते और खूब शोर-गुल मचाते हैं। शासन-प्रणाली अपूर्ण, सैन्य अशिक्षित और वैज्ञानिक विषय की अनभिज्ञता अधिकतर देखने में आई। हम लोग चीन की राजधानी पेकिन देखने चले। उसी समय एक प्रादेशिक शासनकर्ता पेकिन जारहे थे। हम उन्हींके साथ हो लिये।

चीन के सभी स्थान मनुष्यों से भरे थे किन्तु अधिकांश लोग दरिद्र और मूर्ख थे। तथापि इस अवस्था पर भी लोगों के अहङ्कार का अन्त नहीं। चीन के हाकिम राजधानी को जारहे हैं। रास्ते के लोग उनके लिए रसद जमा करते हैं। वे अपने ख़र्च से फ़ाज़िल चीज़ हम लोगों के हाथ बेच कर मजे में चार पैसे पैदा कर रहे हैं। उस पर भी ये राजप्रतिनिधि हैं।

रास्ते में कोई दुर्घटना नहीं हुई। केवल एक दिन एक छोटी सी नदी पार होने के समय मेरा घोड़ा, पाँव पिछलने से, गिर पड़ा और बेवक्त़ मुझे स्नान करा दिया।

पचीस दिन रास्ता चल कर हम लोग पेकिन पहुँचे। हम पाँच आदमी थे। मैं, मेरे भतीजे का दिया हुआ नौकर, मेरा साझेदार अँगरेज़, उनका नौकर और वृद्ध महाशय। ये भी पेकिन देखने हमारे साथ आये थे।

एक दिन वृद्ध ने मेरे पास आकर हँसते हँसते कहा-"एक बहुत अच्छी खबर है, सुनने से आप लोग खुश होंगे।" वह सुसंवाद सुनने के लिए हम लोगों ने उत्सुक होकर पूछा। उन्होंने कहा-व्यापारियों का एक दल स्थल-मार्ग से साइबीरिया होकर यूरोप जा रहा है। हम लोग चाहें तो उनके साथ यूरोप लौट जा सकते हैं। सचमुच में ख़बर बहुत अच्छी थी। हम लोग जाने को राजी हुए। हम लोग राह-खर्च देकर वृद्ध को उनके देश पहुँचा देंगे, इस शर्त पर उन्हें भी साथ ले लिया।