राबिन्सन-क्रूसो/क्रूसो का विपद से छुटकारा।

राबिनसन-क्रूसो  (1922) 
द्वारा डैनियल डीफो, अनुवादक जनार्दन झा

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क्रूसो का विपद से छुटकारा।

जय नहीं तो क्षय होगा ही, यह संकल्प करके हम दस दिन और चले; तब मनुष्यों की बस्ती का कुछ कुछ चिह्न दिखाई देने लगा । हमने नाव पर जाते समय दो तीन जगह देखा कि काले काले नंगे लोग कछार में खड़े होकर हम लोगों की ओर देख रहे हैं । उन लोगों को देख कर हम उनके पास जाना चाहते थे किन्तु इकजूरी ने हमें रोका । तब हम नाव को किनारे किनारे ले चले । यह देख कर वे लोग भी नाव के साथ साथ दौड़ चले । हमने गौर करके देखा, उन लोगों में [ ३३ ]
किसी के पास कोई हथियार न था । सिर्फ एक आदमी के हाथ में एक लम्बी सी पतली लाठी थी । वे लोग लक्ष्य को स्थिर करके बहुत दूर से लाठी फेंक कर मार सकते थे । इस कारण हमने नाव को किनारे से कुछ दूर ही ठहरा कर इशारे से उन लोगों से कुछ खाने की चीज़ माँगी । उन लोगों ने भी संकेत द्वारा हमसे नाव ठहराने को कहा और कुछ खाद्य सामग्री लाना स्वीकार किया । हमने पाल गिरा कर नाव को ठहराया । उन दर्शकों में से दो मनुष्य ऊपर दौड़ कर गये और आध घंटे के भीतर कुछ सूखा मांस और अपने देश का थोड़ा सा अन्न ले आये । मालूम न था कि यह खाद्य किस तरह खाया जाता है, फिर भी उनको ग्रहण कर लेना हमारे लिए आवश्यक था । अब प्रश्न यह उपस्थित हुआ कि इन सामग्रियों को किस युक्ति से लेना ठीक होगा । क्योंकि हमें भी उन लोगों के पास जाने का साहस नहीं होता था और वे लोग भी हमें भय की दृष्टि से देख रहे थे । आख़िर उन्हीं लोगों ने प्रश्न का समाधान कर दिया । वे लोग एक दम जल के स्रोत के समीप रख कर दूर जा खड़े हुए । हम लोग नाव से उतर कर खाने की वस्तुएँ लेकर फिर नाव पर आ चढ़े । वे लोग किनारे पर जा खड़े हुए ।

हमने उन लोगों को इशारे से धन्यवाद दिया । कोरा धन्यवाद छोड़ उन लोगों को देने योग्य हमारे पास एक भी वस्तु न थी । किन्तु दैवयेाग से उन लोगों को शीघ्र ही परम प्रसन्न कर देने का अच्छा एक सुयोग हाथ आाया । जब हम किनारे के समीप ठहरे थे तब दो बलवान पशु परस्पर लड़ते हुए पहाड़ से उतर कर नदी की ओर जाने लगे । वे खेल [ ३४ ]
रहे थे या परस्पर लड़ रहे थे यह ठीक समझ में न आया । उनको आते देख कर जितने लोग किनारे पर खड़े थे वे, विशेष कर स्त्रियाँ, भयभीत होकर भागने लगीं; किन्तु वे दोनों पशु काफिरों की ओर ध्यान न दे कर पानी में जा गिरे। कुछ देर वे पानी में उछल कूद कर तैरने लगे । आख़िर उन दोनों में एक हमारी नौका के बहुत हीनिकट आया । यह देख हम बन्दूक में गोली भर कर तैयार हो गये और इकजूरी से ऊपर दोनों बन्दूकों में गोली भरने को कहा । वह जंगली जानवर जब हमारे लक्ष्य के भीतर आया तब हमने गोली मारी । गोली ठीक उसके सिर में लगी । वह उसी घड़ी डूब गया और कुछ ही देर में फिर उतरा आया । वह मृत्यु की यन्त्रणा से छटपटाता हुआ पानी में ऊबता डूबता किनारे की ओर फिर चला । किन्तु कछार के ऊपर जाने के पहले ही मर गया । दूसरा पशु, बन्दूक़ की आवाज़ से डर कर, पहाड़ की ओर जी छोड़ कर भागा ।

बन्दूक़ की आवाज़ सुनकर और आग की झलक देखकर हबसियों के आश्चर्य और भय की सीमा न रही । कितने ही लोग तो भय से मूर्छित होकर धरती पर गिर पड़े । उस जानवर के मर जाने पर हमने उन लोगों को संकेत किया कि उस जन्तु को पानी से निकाल कर ऊपर ले जाओ । तब वे लोग साहस पूर्वक पानी में घुस कर उस को खोजने लगे । उसे खींच कर जब वे लोग ऊपर ले आये तब हमने उसे पहचाना वह बहुत बड़ा चीता था । उसका अंग गोली और छरों से छिन्न भिन्न हो गया था । हबशियों ने प्रसन्न होकर हमारी प्रशंसा के हेतु [ ३५ ]
हाथ उठाये । कि इन्होंने उसे कैसे मार डाला । वे लेग विस्मित होकर सोचने लगे । फिर उन्होंने हमसे उस बाघ के खाने की अनुमति चाही । हम ने ऐसा संकेत किया मानो बड़ी प्रसन्नता से उसके लिए आज्ञा देते हैं । इससे वे लोग बहुत खुश हुए । वे झटपट उसे काटने लग गये । उन लेागों के पास यद्यपि छुरी न थी तथापि उन लोगों ने एक काठ के बने पैने औज़ार से इतनी आसानी और इतनी शीघ्रता से बाघ की खाल उतार डाली कि हम लोग छुरी से भी वैसा नहीं कर सकते । उन लोगों ने हमको भी कुछ मांस देना चाहा, किन्तु हमने अस्वीकार करके संकेत द्वारा सब मांस उन्हीं लोगों से ले लेने को कहा हमने सिर्फ़ बाघ का चमड़ा माँगा । सो उन लोगों ने बड़ी खुशी से वह हमारे हवाले किया और अपने देश का बना बनाया कुछ खाना भी ला दिया । यद्यपि हमें यह मालूम न था कि वह खाना किस क़िस्म का था तथापि ले लिया; और एक मिट्टी के बर्तन को उलटा कर दिखलाया कि हमारे पास पीने का पानी बिलकुल नहीं है, हमें थोड़ा जल चाहिए । तब हमारे इस संकेत को समझ कर उन लोगों ने किसी को पुकार कर कुछ कहा । थोड़ी देर में दो स्त्रियाँ मिट्टी के बड़े बर्तन में पानी ले आई । वे बिलकुल नंगी थीं पहले की तरह वे लोग उस बर्तन को नीचे रख कर हट गये । हमने इकजूरी को भेज कर अपने तीनों ख़ाली घड़ों को भरवा मँगाया ।

हमारे पास अन्न, फल-मूल और जल इत्यादि सभी वस्तुएँ खाने पीने की जुट गईं । हमने अपने हबशी मित्रों से बिंदाई लेकर प्रस्थान किया । ग्यारह दिन बराबर अग्रसर होने के बाद सामने एक टापू दिखाई दिया । वह टापू जल के बीच नाक की तरह बाहर निकल आया था । उसे घूम कर

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बाहर निकल आने पर आगे की ओर समुद्र में और भी टापू

देख पड़े । तब हमने समझा कि कि हम वार्ड अन्तरीप और वार्ड द्वीप के मध्य में आ गये हैं । तो भी वे दोनों स्थान वहाँ से बहुत दूर थे । हमको किस तरफ़ जाना चाहिए, इसका हम निर्णय न कर सकते थे । यह आशंका भी हो रही थी कि हवा तेज़ हो जायगी तो दो स्थानों में कहीं भी न पहुँच सकेंगे ।

इस तरह चिन्ता से व्याकुल होकर हम कमरे के भीतर जा बैठे । इकजूरी नाव खे रहा था । वह एकाएक ज़ोर से चिल्ला उठा –‘महाशय, महाशय, एक पालवाला जहाज !" उसके पुराने मालिक का कोई जहाज हम लेागों पर धावा करने आ रहा है, यह समझ कर वह अत्यन्त डर गया । किन्तु हमको डर न लगा, क्योंकि हम जानते थे कि उन लोगों की सीमा से अब हम बाहर निकल आये हैं । हम फुरती से कमरे के बाहर आये और देखते ही समझ गये कि वह पोर्तुगीजों का जहाज है । हमने अनुमान किया कि वह हबशियों को लाने के लिए गिनी-उपकूल में जा रहा है । किन्तु कुछ ही देर में हमारा यह अनुमान गलत निकला । जहाज़ किनारे की तरफ न आकर समुद्र की ही ओर जाने लगा । तब हमने उन लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की इच्छा से समुद्र की ओर नाव को छोड़ दिया ।

जहाँ तक संभव था, पाल तान देने पर भी हम ने देखा कि उनकी दृष्टि का आकर्षण संकेत द्वारा करने के पहले ही वे लोग बहुत दूर चले जायेंगे । हम हताश हो रहे थे । इसी समय देखा कि वे लोग पाल गिरा कर हमारे लिए अपेक्षा कर रहे हैं । वे कदाचित् दूर-वीक्षण यन्त्र लगा कर [ ३७ ]
हमें देख सकें, इस आशा से उत्साहित हो कर हम झंडी उड़ाने लगे । बन्दूक की आवाज़ कर के हमने अपनी विपत्ति की सूचना दी । यह देख कर वे लोग दया कर के जहाज़ को हमारी ओर घुमा कर लाने लगे । कोई एक पहर में हम उन लोगों के पास पहुँच गये ।

उन लोगों ने क्रमशः पोर्तुगीज़, स्पेनिश और फ्राँस की भाषा में हम से परिचय पूछा, पर हम उनकी एक भी भाषा न समझ सके । उस जहाज़ पर एक स्काच नाविक था । उसने जब अँगरेज़ी में हमारा परिचय पूछा तब हमने उससे कहा--हम अँगरेज़ हैं, शैली से मूरों का दासत्व त्याग कर भाग निकले हैं । यह सुन कर उन लोगों ने हमें जहाज़ पर आने की आज्ञा दी और बड़ी दयालुता के साथ हम लोगों को तथा हमारी चीज़-वस्तुओं को अपने जहाज़ पर रख लिया ।

उस दुःसह दुर्दशा और निराशा से उद्धार होने पर हमें जो आनन्द हुआ, उसका वर्णन नहीं हो सकता । इस उपकार की खुशी में हमारे पास जो कुछ था सब हमने जहाज़ के कप्तान को उपहार के तौर पर दे दिया । किन्तु उन्होंने उदारता का परिचय देकर कहा--महाशय, मैं आप का उद्धार करने के बदले आपसे कुछ न लूँग । कौन जानता है, कभी मेरी भी अवस्था आप ही की सी हो जाय । यही सोच कर मैंने आपका उद्धार किया है । हम लोग ब्रेज़िल जा रहे हैं । आप भी अपने देश से बहुत दूर जा पहुँचेगे । आपके पास से यदि मैं आपका सर्वस्व ले लूँ तो आप वहाँ जाकर क्या खाकर प्राण धारण करेंगे । तब, जिस प्राण की आज मैंने रक्षा की है उसी के विनाश का क्या मैं फिर कारण बनूँगा ? मैं आपको यों ही ब्रेज़िल पहुँचा दूँगा और आपकी जितनी चीजें हैं, सब आपको [ ३८ ]
दे दूँगा । ये सब वस्तुएँ आपके भरण-पोषण और घर लौट जाने के समय राह-ख़र्च का काम देंगी ।" यह कह कर उन्होंने नाविकों को रोक दिया कि वे हमारी किसी चीज़ को न छुएँ और हमारी सब चीजें अपने ज़िम्मे रख कर मुझे एक चिट्ठी लिख दिया । उस चिट्टे में मिट्टी के घड़ों तक का उल्लेख था । उसका मतलब यही था कि ब्रेज़िल में जाकर हम उस चिट्ठी के ज़रिये अपनी सारी चीजें सहेज लें ।

हमारी नाव बहुत बढ़िया थी। कप्तान ने उसे मोल लेने की इच्छा से दाम पूछा । हमने कहा--“आप के साथ मोल तोल क्या ? आपकी दृष्टि में जो मूल्य जचे वही दे दीजिये ।" इस पर उन्होंने हमको साढ़े छः सौ रुपया देना चाहा और कहा, ब्रेज़िल जाने पर यदि इसका दाम कोई अधिक लगावेगा तो हम भी अधिक देंगे । उन्होंने पाँच सौ रुपया देकर इकजूरी को ख़रीदना चाहा; किन्तु जिसने मुझे स्वाधीनता प्राप्ति में सहायता दी थी, उसकी स्वाधीनता बेचने का विचार मेरा न हुआ । इकजूरी के कप्तान के पास रहना स्वीकार करने पर मैंने उसे योंही दे दिया । कप्तान ने कहा--इकजूरी यदि क्रिस्तान हो जाय तो उसे हम दस वर्ष बाद दासत्व से मुक्त कर देंगे ।

हम लोग बाईस दिन के बाद निर्विघ्न ब्रेज़िल के शान्त उपसागर में पहुँचे । बुरी दशा से तो उद्धार हुआ, किन्तु अब क्या करना होगा ? यही एक भारी चिन्ता थी । कप्तान के सद् व्यवहार का सम्यक् वर्णन करने में हम अक्षम हैं । उन्होंने हमसे कुछ भी जहाज़ का भाड़ा न लिया । इसके अलावा हमने अपने पास की जिन चीज़ों को बेचना चाहा वे सब उन्होंने मोल ले लीं । बाघ और सिंह का चमड़ा [ ३९ ]
दो बन्दूकें और मोम वगैरह बेंचने पर हमें कोई दो हज़ार रुपया मिले । यही पूँजी लेकर हम ब्रेजिल के किनारे उतरे ।

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