राजा और प्रजा  (1919) 
रवीन्द्रनाथ टैगोर, अनुवादक रामचंद्र वर्मा

बंबई: हिंदी ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय, पृष्ठ -

 
 

हिन्दी-ग्रन्थ-रत्नाकार-सीरीजका ३८ वाँ ग्रन्थ।

राजा और प्रजा।

जगत्प्रसिद्ध लेखक और कवि

डा॰ रवींद्रनाथ टैगोर की

राजा और प्रजा' नामक निबन्धावलीका अनुवाद।



अनुवादक कर्त्ता—

श्रीयुत बाबू रामचन्द्र वर्मा।



प्रकाशक—

हिन्दी-ग्रन्थ-रत्नाकर कार्यालय।




आश्विन, १९७६ वि॰।

सितम्बर, सन् १९१९ ई॰।

प्रथमावृति।]
[मूल्य एक रुपए।
 

जिल्द-सहितका मूल्य १।″)

 
प्रकाशक—

नाथूराम प्रेमी,
हिन्दी-ग्रन्थ-रत्नाकर कार्यालय,

हीराबाग, गिरगाँव, बम्बई।
 
 

प्रिण्टर—
मंगेश नारायण कुलकर्णी,
कर्नाटक छापखाना,
४३४ ठाकुरद्वार, बम्बई।

निवेदन

इसके पहले हमारे पाठक जगत्प्रसिद्ध लेखक सर रवीन्द्रनाथ टागोरकी दो निबन्धावलियाँ (स्वदेश और शिक्षा) पढ़ चुके हैं। आज यह तीसरी निबन्धावली उपस्थित की जाती है। हमारा विश्वास है कि हिन्दीके राजनीतिक साहित्यमें यह एक अपूर्व चीज होगी। इसमें पाठकोंको कवि-सम्राटकी सर्वतोमुखी प्रतिभाका दर्शन होगा। वे देखेंगे कि रवीन्द्र बाबूका राजनीतिक ज्ञान भी कितना गंभीर, कितना प्रौढ़ और कितना उन्नत है। हमारी समझमें राजनीति के क्षेत्र में काम करनेवालोंको और अपने प्यारे देशको उन्नति चाहनेवालोंको ये निबन्ध पथ-प्रदर्शकका काम देंगे। राजा और प्रजाके पारस्परिक सम्बन्धको स्पष्टताके साथ समझनेके लिए ऐसे अच्छे विचार शायद ही कहीं मिलेंगे।

निबन्ध पुराने हैं, कोई कोई तो २५-२६ वर्ष पहले के लिखे हुए है; फिर भी वे नये से मालूम होते हैं। उनमें जिन सत्यों पर विचार किया गया है, वे सार्वकालिक और सार्वदेशीय हैं, और इस लिए वे कभी पुराने नहीं हो सकते—उनकी जीवनी शक्ति सदा स्थिर रहेगी।

पाठकोंसे यह निवेदन कर देना आवश्यक है कि ये निबन्ध अध्ययन और मनन करने योग्य हैं—केवल पढ़ डालनेके नहीं। साधारण पुस्तकोंके समान पढ़ जानेसे ये समझमें भी नहीं आ सकते। इन्हें बारम्बार पढ़ना चाहिए और हृदयंगम करना चाहिए।

हिन्दी-संसारमें गंभीर और प्रौढ़ ग्रंन्थोंके पढ़नेवालोंकी संख्या धीरे धीरे बढ़ रही है, यह जानकर ही हमने इस निबन्धावलीको प्रकाशित करनेका साहस किया है। आशा है कि इसके पढ़नेवाले हमें यथेष्ट संख्या में मिल जायेंगे।

—प्रकाशक।

 

सूची।

निबन्ध। लिखे जानेका समय। पृष्ठसंख्या।
१ अँगरेज और भारतवासी (विक्रम संवत् १९५०)
२ राजनीतिके दो रुख ( {{{1}}}{{{1}}} ) ४६
३ अपमानका प्रतिकार (वि॰ स॰ १९५१) ५७
४ सुविचारका अधिकार ( {{{1}}} {{{1}}} ) ७१
५ कण्ठ-रोध (वि॰ सं॰ १९५५) ८२
६ अत्युक्ति ९५
७ इम्पीरियलिज्म (साम्राज्यवाद) (वि॰ सं॰ १९६२) ११३
८ राजभक्ति ( {{{1}}} {{{1}}} ) १२०
९ बहुराजकता ( {{{1}}} {{{1}}} ) १३२
१० पथ और पाथेय १३७
११ समस्या १७४
 

रवीन्द्र बाबूके अन्य ग्रन्थ।

१ स्वदेश। इसमें रवीन्द्रबाबूके १ नया और पुराना, २ नया वर्ष, ३ भारतका इतिहास, ४ देशी राज्य, ५ पूर्वीय और पाश्चात्य सभ्यता, ६ ब्राह्मण, ७ समाजभेद, और ८ धर्मबोधका दृष्टान्त, इन आठ निबन्धोंका हिन्दी अनुवाद है। अपने देशका असली स्वरूप समझनेवालोंको, उसके अन्तःकरण तक प्रवेश करनेकी इच्छा रखनेवालोंको, तथा पूर्व और पश्चिमका अन्तर हृदयंगम करने वालोंको ये अपूर्व निबन्ध अवश्य पढ़ने चाहिए। बड़ी ही गंभीरता और विद्वत्तासे ये निबन्ध लिखे गये हैं। तृतीयावृत्ति हो चुकी है। मू॰ ॥″)

२ शिक्षा। इसमें १ शिक्षा-समस्या, २ आवरण, ३ शिक्षाका हेरफेर, ४ शिक्षा-संस्कार और ५ छात्रोंसे संभाषण, इन पाँच निबन्धों के अनुवाद हैं। इनमें शिक्षा और शिक्षापद्धतिके सम्बन्धमें बड़े ही पाण्डित्यपूर्ण विचार प्रकट किये गये हैं। इनसे आपको मालूम होगा कि हमारी वर्तमान शिक्षापद्धति कैसी है, स्वाभाविक शिक्षापद्धति कैसी होती है और हमें अपने बच्चोंको कैसी शिक्षासे शिक्षित करना चाहिए। मूल्य नौ आने।

३ आँखकी किरकिरी। यह रवीन्द्रबाबूके बहुत ही प्रसिद्ध उपन्यास 'चोखेर वालि' का हिन्दी अनुवाद है। वास्तव में इसे उपन्यास नहीं किन्तु मानस शास्त्र के गूढ़ तत्वोंको प्रत्यक्ष करानेवाला मनोमोहक चित्रपट कहना चाहिए। मनुष्योंके विचारोंमें बाहरी घटनाओं और परिस्थितियों के कारण जो अगणित परिवर्तन होते हैं उनका आभास आपको इसकी प्रत्येक पंक्ति और प्रत्येक वाक्यमें मिलेगा। सहृदय पाठक इसे पढ़कर मुग्ध हो जायँगे। बड़ा ही सरस उपन्यास है। जो लोग केवल प्रेम-कथायें पढ़ना पसन्द करते हैं, उनका भी इससे खूब मनोरंजन होगा। क्योंकि इसमें भी एक प्रेम-कथा ग्रंथित की गई है। अनुवाद बहुतही उत्तम हुआ है। तृतीयावृत्ति। मू॰ १॥″)

मैनेजर, हिन्दी-ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय,
हीराबाग, पो॰ गिरगाँव, बम्बई

 

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