रक्षा बंधन
विश्वंभरनाथ शर्मा 'कौशिक'

आगरा: राजकिशोर अग्रवाल, विनोद पुस्तक मंदिर, पृष्ठ १०० से – १०९ तक

 


वशीकरण

( १ )

नत्थू चाचा ब्राह्मण हैं। वयस पैंतालीस के लगभग है। मुहल्ले में वह नत्थू चाचा के नाम से पुकारे जाते हैं। नत्थू चाचा की जीविका पूजन-पाठ से चलती है। एक लड़का है जिसकी वयस १४, १५ वर्ष के लगभग है। यह लड़का एक संस्कृत-पाठशाला की प्रथमा कक्षा में पढ़ता है। हिन्दी मिडिल पास करके नत्थू चाचा ने इसे संस्कृत-शिक्षा दिलाना ही अधिक उचित समझा। लोगों ने समझाया भी कि अंँग्रेजी पढ़ाओ परन्तु नत्थू चाचा ने उत्तर दिया----"अँग्रेजी पढ़कर लड़का भ्रष्ट हो जाता है, आचार-विचार दूषित हो जाते हैं।"

नत्थू चाचा शाक्त हैं और अपने शाक्त कहने में गर्व का अनुभव करते हैं। परन्तु बुद्धि उनमें वाजिबी ही वाजिबी है।

उनका वेश भी शाक्तों जैसा है। सिर के ऊपर बाल बड़े-बड़े, कंधों तक दाढ़ी और माथे पर लाल बिन्दी। लाल वस्त्र का व्यवहार करते है। तन्त्र-मन्त्र तथा अनुष्ठान अधिक करते हैं। आप में, आप ही के कथनानुसार, अलौकिक कार्य करने की भी शक्ति है। मारण, उच्चाटन वशीकरण, शत्रु-स्तम्भन तथा मुकदमे जिता देना उनके बायें हाथ का खेल है, यद्यपि इन शक्तियों का कोई ज्वलन्त प्रमाण अभी तक किसी को देखने को नहीं मिला। जब कोई पूछता--"नत्थू चाचा, आपने कभी भारण किया है।" तो नत्थू चाचा उत्तर देते-"आज कल मारण करवा कौन सकता है। मारण में हजारों रुपये खर्च होते हैं। इसके अतिरिक्त मैं बाल-बच्चेदार प्रादमी, में मारण करता भी नहीं। गृहस्थ को मारण नहीं करना चाहिए।"

"परन्तु आप चाहें तो कर सकते हैं।"

"हाँ अाँ आँ--कर तो सब कुछ सकते हैं।"

"वशीकरण, उच्चाटन आदि तो करते होंगे?"

"क्यों नहीं, यह सब करते हैं। वशीकरण तो अभी हाल में ही किया है। एक बड़े आदमी हैं उनकी पत्नो पति के उदासीन व्यवहार से बहुत दुखी थी। उसने पति का वशीकरण हमसे करवाया। हमने किया अब आज कल यह दशा है कि जितना पानी वह पिलाती है उतना ही पति महाराज पीते हैं---गुलाम हो गया, गुलाम! तब से वह स्त्री हमें बहुत मानती है।" इस प्रकार पण्डित जी के कहने से ही उनके अलौकिक कार्यों की जानकारी प्राप्त होती थी।

एक दिन एक व्यक्ति ने नत्थू चाचा के मुँह पर कह दिया--"अाज कल के शाक्त केवल मांँस-मदिरा खाने-पीने भर के शाक्त हैं---और उनमें कोई तत्व नहीं है।"

यह सुन कर नत्थू चाचा भाग हो गये। बोले---"अभी लड़के हो, बच्चे किसी शाक्त से पाला नहीं पड़ा किसी दिन पाला पड़ जायगा तो सब भूल जाओगे। मेरी बात दूसरी है---पर और किसी शाक्त के सामने यह बात कहना भी नहीं ।”

"कहेंगे तो क्या करेगा?"

"अाज कल के लड़कों में यह बड़ा दोष है कि हर बात में टांग अड़ाते हैं और बहस करने को तैयार रहते हैं। और इसी में कभी खता खा जाते हैं तब रोते हैं।"

एक व्यक्ति बोला---"अच्छा नत्थू चाचा मनुष्य का मारण आप नहीं करते; परन्तु पशुओं को मारण तो आप कर सकते हैं।" "पशुओं का मारण करने में क्या है।" नत्थू चाचा मुँह बना कर बोले।

"तो चाचा, बाबू मनोहर दास के कुत्ते का मारण आप कर दीजिये। बड़ा कष्ट है उससे। साला रात भर भूँकता है, नींद हराम कर देता है। जो कुछ दस-बीस रुपये खर्च होंगे, वह हम दे देंगे।"

"अबे क्या तुमने मुझे कुत्ता-मार समझा है। कुत्ता मारना जल्लाद का काम है। गधा कहीं का।"

"जल्लाद तो लाठी या बन्दूक से मारता है। आप मन्त्र-बल से मारेंगे। किसी को पता भी न होगा कि किसने मरवा दिया।"

"कुचिला खिला देना, मर जायगा। कुत्ते-बिल्लयों के लिए मारण नहीं किया जाता।"

"कुचिला खिला दें! यह क्या हमें नहीं मालूम है। अच्छी तरकीब बताई, जिसमें बाबू मनोहरदास हम पर दावा कर दें।"

"उन्हें पता चलेगा कि तुमने खिलाया है तब तो दावा करेंगे।"

"पता तो तुरन्त चल जायगा। हमसे उस कुत्ते के पीछे बाबू साहब से कहा-सुनी हो चुकी हैं। वह तुरन्त ताड़ जायँगे कि इन्हीं का काम है।"

"परन्तु प्रमाण क्या देंगे?"

"प्रमाण भी उत्पन्न कर लेंगे। अपने दो चार पिट्ठुओं से कह देंगे, वे गवाही देंगे कि हमारे सामने श्यामनारायण ने इसे मिठाई खिलाई थी, तभी से कुत्ते को हालत खराब हो गई।"

"खैर भई तुम जानो। हम इस मामले में कुछ नहीं कर सकते।"

( २ )

मुहल्ले के नवयुवकों ने परस्पर परामर्श किया कि नत्थू चाचा बड़े शाक्त और तान्त्रिक बनते हैं, इन्हें किसी युक्ति से जेर करना चाहिए।

एक दिन एक व्यक्ति नत्थू चाचा के यहाँ पहुँचा। नत्थू चाचा से वह बोला---"आप वशीकरण तो कर सकते हैं।" नत्थू चाचा अकड़ कर बोले---"हाँ, इसमें क्या है। यह तो हम चुटकी बजाते कर सकते हैं।"

"और उच्चाटन भी!"

"हाँ! वह भी।"

"तो हमारा एक काम कर दीजिए।"

"क्या काम है।"

"हमारे एक पड़ोसो के पास भैंस है। भैंस क्या है पूरी हथिनी है। पन्द्रह सेर नम्बरी तौल से दूध देती है। वह हम लेना चाहते हैं।"

"खरीद क्यों नहीं लेते?"

"वह कमबख्त वेचता नहीं आप कुछ ऐसा कर दीजिए कि वह भैस हमें मिल जाय।

नत्थू चाचा कुछ देर विचार करके बोले---"यह कार्य उच्चाटन से सिद्ध हो सकता है। भैंस के स्वामी का उच्चाटन किया जाय जिससे वह उस भैंस को अपने यहाँ रक्खे! उस समय तुम उसे खरीद ले सकते हो।"

"हाँ! ऐसा कीजिए या ऐसा कर दीजिए कि भैंस का स्वामी अपनी खुशी से हमें भैस दे दे।"

"वह एक ही बात है!"

"एक बात नहीं है। अपनी खुशी से देगा तो दामों में किफायत हो जायगी, या दाम ही न ले।"

"ऐसा तो वशीकरण से ही हो सकता है।

"तो वही कीजिए।"

"इसमें खर्च पड़ेगा।"

"कितना खर्च पड़ेगा ?"

नत्थू चाचा ने कुछ क्षण सोच कर कहा---"पचीस रुपये के लगभग पड़ेगा।"

"तो रुपये काम हो जाने पर मिलेंगे।"

"पूजन-पाठ की सामग्री कहाँ से आवेगी?" "देखो चाचा! मामले की बात है। काम हो जाने पर आप हमसे कौड़ी-गण्डे से ले लीजिएगा। पहले देने की बात समझ में नहीं आती। काम न हुआ तो?"

"क्या लड़कपन की बात करते हो। काम कैसे न हो।"

"जब आपको इतना विश्वास है तो फिर रुपये भी मिल जायँगे--- परन्तु काम हो जाने पर---व्यवहार की बात है चाचा---नाराज मत होना।"

"परन्तु पूजन-सामग्री के लिए तो कुछ दे दो! उसके लिए हम अपने पास से रुपये नहीं लगायेंगे।"

"कितना रुपया लगेगा?"

"बस पाँच-सात रुपये।"

"अच्छी बात है सात रुपये हम आपको दे देंगे।"

"तब ठीक है। हम तुम्हारा काम कर देंगे।"

"कब?"

"दीपावली आ रही है। बड़ा शुभ पर्व है। उसी दिन पूजा करेंगे?"

"दीपावली के दिन!"

"हाँ! हम तांत्रिकों के लिए दीपमालिका की अमावश्या बड़ी महत्वपूर्ण है। उस दिन जो अनुष्ठान किया जाता है, वह अवश्य सिद्ध होता है।"

"तो घर में ही करोगे।"

"नहीं गंगा-तट पर एकान्त में। शिवाबलि देनी होगी--वह घर में नहीं हो सकती।"

"शिवाबलि क्या?"

"अब यह तुम क्या करोगे पूछ के।"

"कुछ नहीं? जानना चाहते हैं।"

"किसी दिन साथ ले चलकर दिखा दें। शिवा श्रृगाल का रूप रखकर आती है और अपना भाग खा जाती है।"

"अच्छा!" "हाँ!"

"यह तो बड़े आश्चर्य की बात है।"

"अभी तुम बच्चे हो। तुम्हें इन बातों का क्या ज्ञान।"

"तो चाचा कहाँ जाओगे?"

चाचा ने एक स्थान बताया।

वह व्यक्ति बोला---"वह तो बड़ा भयानक स्थान है।"

चाचा हंँसकर बोले---"हाँ, तुम्हारे लिए तो ऐसा ही हैं। पर हमारे लिए कोई बात नहीं।"

"आपको भय नहीं लगता।"

"क्या बात करते हो। भय काहे का। यह तो साधारण बात है। हम शवसाधन कर सकते हैं।"

"वह क्या?"

"मुर्दे की छाती पर बैठ कर अनुष्ठान किया जाता है। यह सब तंत्र की साधनाएँ हैं---शवसाधन, लतासाधन।"

"तो रात को जाते होगे।"

"और नहीं क्या दिन में। रात में ग्यारह-बारह बजे।"

"अच्छी बात है---किसी दिन आपके साथ चलकर देखेंगे।"

"चक्र में सम्मिलित हो जाना।"

"चक्र क्या?"

"एक प्रकार का पूजन होता है।"

"जैसा आप कहेंगे करेंगे। तो हम सात रुपये आपको दे जायँगे। दीपावली को एक सप्ताह है।"

"बस उसी दिन सब काम हो जायगा।"

"बस ठीक है।"

( ३ )

उस व्यक्ति ने सात रुपये नत्थू चाचा को दे दिये।

दीपावलो का दिन आया। नत्थू चाचा ने पूजन का सब समान बनवाया! मांस-मदिरा का भी प्रबन्ध किया। यह सब सामान बाँधकर और एक अपने शिष्य को साथ लेकर नत्थू चाचा गङ्गातट पर पहुंचे। इस स्थान से थोड़ी दूर पर श्मशान था।

नत्थू चाचा ने एक साफ-सुथरे स्थान पर आसन लगाया---पूजन की सब सामग्री अपने सन्मुख रक्खी शिष्य भी बैठा। इस प्रकार उन्होंने अपना कार्य आरम्भ किया।

गुरु-शिष्य दोनों ने मदिरा-पान किया और नशे में झूम-झूमकर स्तोत्रों का उच्चारण करने लगे। कुछ देर बाद शिवाबलि देने के लिए तैयारी की। एक पत्तल में, भोजन की जो सामग्री ले गये थे, रखकर तथा एक सिकोरे में मदिरा लेकर नत्थू चाचा अकेले ही एक ओर चले।

कुछ दूर निकल जाने पर उन्होंने एक स्थान पर पत्तल रख दी तथा मन्त्र पढ़कर ताली बजाई और 'शिवे' कह कर पुकारा।

इसी समय अन्धकार में से एक व्यक्ति निकलकर धीरे-धीरे उनकी ओर आता दिखाई पड़ा। बिलकुल नङ्ग-धड़ङ्ग, केवल एक लाल लंगोटा बांधे हुए काला भुजंगा, आँखें लाल, भयानक वेश, हाथ में त्रिशूल।

नत्थू चाचा आँख फाड़कर मंत्र-मुग्ध की भांति उसकी ओर देखते रहे। वह धीरे-धीरे चाचा के सम्मुख आया। चाचा भय से काँपने लगे, मुँह सूख गया।वह मूर्ति पाकर लगभग चार गज की दूरी पर खड़ी हो गई। चाचा थर-थर काँप रहे थे।

वह मूर्ति गम्भीर स्वर में बोलो--"दुष्ट आज तूने भ्रष्ट पूजन किया है। हमको और शिवा को बड़ा क्लेश हुआ। इसी कारण शिवा तेरे बुलाने पर नहीं आयी! बोल इसका क्या दन्ड दिया जाय।" अन्तिम वाक्य मूर्ति ने गर्जकर कहा।

चाचा की जीभ तालू से चिपक गई थी, इस कारण कुछ बोल न सके, हाथ जोड़कर चुपचाप खड़े रहे।

मूर्ति ने पुनः कड़ककर कहा--"उत्तर नहीं देता दुष्ट! अभी तुझे समाप्त कर दूंँ।" कह कर मूर्ति ने अपना त्रिशूल उठाकर चाचा की ओर ताना।

चाचा कुछ बोले नहीं। हाथ जोड़े हुए औंधे मुँह गिरे और बेहोश हो गये। मूर्ति जिस ओर से आयी थी उसी ओर वापस जाकर अन्धकार में विलीन हो गई। जब चाचा को देर हुई तो उनका शिष्य उन्हें ढूँढ़ने आया। उन्हें बेहोश पड़ा देखकर उसे भी भय लगा, परन्तु उसने शीघ्रता पूर्वक चाचा के मुख तथा सिर पर गंगाजल डाला। कुछ क्षण पश्चात चाचा को होश आया। होश आते ही बोले---'प्रभो, दास का अपराध क्षमा कीजिये!"

शिष्य बोला---"यह आप किससे कह रहे हैं।"

चाचा ने शिष्य की आवाज सुनकर उसे ध्यान-पूर्वक देखा---जान में जान पायी। उठकर बैठ गये। शिष्य से बोले---"जल्दी चलो यहाँ से, आज पूजन में कुछ गड़बड़ी हुई थी! भगवान भैरव स्वयम् आये थे।"

घर आकर चाचा को बुखार आगया! भैंस का उच्चाटन कराने वाला व्यक्ति तथा मुहल्ले के दो अन्य लड़के चाचा को देखने आये। उस व्यक्ति ने पूछा---"चाचा बुखार कैसे आ गया?"

"क्या बताऊँ, तुम्हारा कार्य करने गया था---एक शिष्य साथ था। उसने पूजन में कुछ त्रुटि कर दी---इससे भगवान भैरव रुष्ट हो गये।"

"और इसलिए आपको बुखार आ गया।"

"अरे वह तो हमीं थे जो जीवित लौट आये। दूसरा होता तो या तो पागल हो जाता या मर जाता। परन्तु मैं तो साधारण तांत्रिक नहीं हूँ! भगवान भैरव सामने आये। कुछ सवाल-जवाब हुए! अन्त को कुछ और तो कर न सके---दण्ड में बुखार दे गये।"

"तो आपने भैरव के दर्शन किये।"

"बिलकुल साक्षात-जैसे हम-तुम बैठे।"

"बड़े भाग्यवान हैं आप।"
"भाग्यशाली की बात नहीं, साधना की बात है। हमने बहुत साधना की है, इसी से बच गये।"

"हमें तो चाचा इन बातों पर विश्वास नहीं है।"

"अभी लड़के हो।"

"चाचा । हमें कुछ सन्देह हो रहा है।"

"सन्देह कैसा

"रामसिंह को आप जानते ही हैं । वह सब जगह कहता फिरता है कि, मैंने भैरव बनकर चाचा के हवास ठिकाने कर दिये।"

चाचा कान खड़े करके बोले-"क्या कहता है ?"

"यही कि चाचा बड़े डरपोक आदमी हैं-बेहोश होकर गिर पड़े।"

"बकता है ! उसका इतना साहस कहाँ हो सकता है जो इतनी रात में वहाँ जाय।"

"पता नहीं ! कहता तो यही है।"

"झख मारता है।"

चाचा ने विश्वास नहीं किया । चाचा के स्वास्थ्य लाभ करने पर चाचा लगे दून को हाँकने ।

परन्तु जब यह दून को हाँकते तब लोग कह देते-"बस देख लिया । उस दिन रामसिंह को देखकर घिग्घी बंध गई, औंधे मुह गिरे।चले हैं बड़े तान्त्रिक बनकर ।"

चाचा कड़क कर कहते-"वह झक मारता है ससुरा-इतना सफेद भूठ ! रामसिंह की इतनी हिम्मत है कि रात में उस स्थान पर जा सके ?"

"वह अकेला नहीं था। दो आदमी और थे, जो वहाँ से कुछ दूर पर खड़े थे।"

"बस रहने दो-हम ऐसी बात नहीं सुनना चाहते।"

वह समाप्त हो गई, परन्तु लड़के चाचा से कहते--"चाचा हमको
भी दिखा दो कि सियार कैसे शराब पीता है।"

इस पर चाचा बिगड़ कर कहते---"क्या कोई मदारी समझा है जो तमाशा दिखा दूँ। देखने के लिए हाथ भर का कलेजा चाहिए।"

"वह तो आपका है। तभी तो बुखार आ गया था।"

चाचा को लोगों ने इतना परेशान किया कि उन्होंने तन्त्र पर बात करना ही बन्द कर दिया। कोई कुछ जिक्र उठाता भी है तो चाचा बात टालकर वहाँ से हट जाते हैं।