युद्ध और अहिंसा/१/३ मेरी सहानुभूति का आधार
वाइसराय की मुलाक़ात के बाद मैंने जो वक्तव्य दिया, उसपर अच्छे-बुरे दोनों ही तरह के खयालात ज़ाहिर किये गये हैं। एक आलोचक ने उसे भावुकतापूर्ण बकवास कहा है तो दूसरे ने उसे राजनीतिज्ञतापूर्ण घोषणा बतलाया है। दोनों अतियों में बड़ा फ़र्क है। मैं समझता हूँ कि अपने-अपने दृष्टिकोण से सभी आलोचकों का कहना ठीक है, लेकिन उसके लेखक के पूरे दृष्टिकोण से वे सभी ग़लती पर हैं। उसने तो सिर्फ अपने संतोष के लिए ही वह लिखा था। उसमें मैंने जो कुछ कहा है उसके हरेक शब्द से मैं बँधा हुआ हूँ। हरेक मानवतापूर्ण सम्मति का जो राजनीतिक महत्त्व होता है, उसके अलावा और कोई राजनीतिक महत्त्व उसका नहीं है। विचारों के पारस्परिक सम्बन्ध को नहीं रोका जा सकता।
एक सज्जन ने तो उसके खिलाफ़ बड़ा जोशीला पत्र मेरे पास भेजा है। उन्होंने उसका जवाब भी माँगा है। मैं उस पत्र को उद्धृत नहीं करूँगा, क्योंकि उसके कुछ अंश खुद मेरी ही समझ में नहीं आये। लेकिन उसका भाव समझने में मुश्किल नहीं है। उसकी मुख्य दलील यह है-“अगर इंग्लैण्ड के पार्ल मेण्ट भवन और वेस्टमिनिस्टर गिर्जाघर के सर्वनाश की सम्भावना पर आप आँसू बहाते है, तो जर्मनी के प्राचीन स्मारकों के सर्वनाश की सम्भावना पर आपके आँसू क्यों नहीं निकलते? और इंग्लैण्ड व फ्रांस से ही आप क्यों सहानुभूति रखते हैं, जर्मनी से आपको सहानुभूति क्यों नहीं है? क्या हिटलर जर्मनी के उस पददलन का ही जवाब नहीं है, जो कि पिछले युद्ध के बाद मित्र-राष्ट्रों ने उसका किया था? अगर आप जर्मन होते, हिटलर की सी साधन सम्पन्नता आपके पास होती, और सारी दुनिया की तरह आप भी बदला लेने के सिद्धान्त में विश्वास करते होते, तो जो हिटलर कर रहा है वही आप भी करते। नाज़ीवाद बुरा होसकता है। दरअसल वह क्या है यह हम नहीं जानते। हमें जो साहित्य मिलता है वह एक तरफ़ा है। लेकिन में आपसे कहता हूँ कि चैम्बरलेन और हिटलर में कोई फ़र्क नहीं है। हिटलर की जगह चैम्बरलेन होते, तो वह भी इससे भिन्न न करते। हिटलर के बारे में विशेष न जानते हुए भी उसकी चैम्बरलेन से तुलना करके उसके साथ आपने अन्याय किया है। इंग्लैण्ड ने हिन्दुस्तान में जो-कुछ किया वह क्या किसी तरह भी उससे अच्छा है, जो कि ऐसी ही परिस्थितियों में दुनिया के दूसरे हिस्सों में हिटलर ने किया है? हिटलर तो पुराने साम्राज्यवादी इंग्लैण्ड और फ्रांस का एक बालशिष्य मात्र है। मैं समझता हूँ कि वाइसरीगल लाज में भावुकता ने आपकी बुद्धि को दबा लिया था।”
इंग्लैण्ड के कुकृत्यों का, सचाई का, खयाल रखते हुए, मैंने जितने ज़ोरों से वर्णन किया है उतने और ज़ोरों से शायद और किसी ने नहीं किया। इसी तरह जितने प्रभावकारक रूप में मैंने इंग्लैण्ड का विरोध किया है उतने प्रभावकारक रूप में शायद और किसी ने नहीं किया। यही नहीं बल्कि मुक़ाबले की इच्छा और शक्ति भी मुझमें ज्यों-की-त्यों बनी हुई है। लेकिन कोई वक्त बोलने और काम करने का होता है तो कोई व़कत ऐसा भी होता है जब खामोशी और अकर्मण्यता धारण करनी पड़ती है।
सत्याग्रह के कोष में कोई शत्रु नहीं है। लेकिन सत्याग्रहियों के लिए नया कोष तैयार करने की मुझे कोई इच्छा नहीं है, इसलिए मैं पुराने शब्दों का ही नये अर्थ में प्रयोग करता हूँ। सत्याग्रही अपने कहे जानेवाले शत्रु के साथ अपने मित्र जैसा ही प्रेम करता है, क्योंकि उसका कोई शत्रु नहीं होता। सत्याग्रही याने अहिंसा का उपासक होने के नाते, मुझे इंग्लैण्ड के भले की ही इच्छा करनी चाहिए। फ़िलहाल जर्मनी-सम्बन्धी मेरी इच्छाओं का कोई सवाल नहीं है। लेकिन अपने वक्तव्य के कुछ शब्दों में मैंने यह बात कही है कि विध्वस्त जर्मनी की राख पर मैं अपने देश की आजादी का महल खड़ा नहीं करना चाहता। जर्मनी के पुराने स्मारकों के सर्वनाश की सम्भावना से भी शायद में उतना ही विचलित हो जाऊँ। लेकिन हेर हिटलर को मेरी सहानुभूति की कोई ज़रूरत नहीं है। वर्तमान गुण-दोषों को देखने के लिए इंग्लैण्ड के पिछले कुकृत्यों और जर्मनी के पिछले सुकृत्यों का उल्लेख अप्रासंगिक है। सही हो या ग़लत, इस बात का कोई खयाल न करते हुए कि इससे पहिले ऐसी ही हालतों में अन्य राष्ट्रों ने क्या किया, मैं इस निर्णय पर पहुँचा हूँ कि इस युद्ध की जिम्मेदारी हर हिटलर पर ही है। उनके दावे के बारे में में अपना कोई निर्णय नहीं देता। यह बहुत मुमकिन है कि डानज़िग को जर्मनी में मिलाने का, अगर डानज़िग-निवासी जर्मन अपने स्वतन्त्र दर्जे को छोड़ना चाहें, उनका अधिकार असन्दिग्ध हो। यह हो सकता है कि गलियारे (कोराइडर) को अपने क़ब्ज़े में करने का उनका दावा ठीक हो। पर मेरी शिकायत तो यह है कि वह एक स्वतंत्र न्यायालय के द्वारा इस दावे की जाँच क्यों नहीं होने देते? अपने दावे का पंचों से फैसला कराने की बात को अस्वीकार कर देने का यह कोई जवाब नहीं है कि ऐसे ज़रियों के द्वारा यह बात उठाई गई है जिनका इसमें स्वार्थ है, क्योंकि ठीक रास्ते पर आने की प्रार्थना तो कोई चोर भी अपने साथी चोर से कर सकता है। मैं समझता हूँ कि मैं यह कहने में कोई ग़लती नहीं करता कि हेर हिटलर अपनी माँग की एक निष्पक्ष न्यायालय द्वारा जाँच होने दें इसके लिए सारा संसार उत्सुक था। उन्होंने जो तरीक़ा इखित्यार किया है उसमें उन्हें सफलता होगई तो वह उनके दावे की न्यायोचितता का सबूत नहीं होगी। वह तो इसी बात का सबूत होगी कि अभी भी मानवी मामलों में ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस का न्याय ही एक बड़ी ताक़त है। साथ ही वह इस बात का भी एक और सबूत होगी कि हम मनुष्यों ने यद्यपि अपना रूप तो बदल दिया है पर पशुओं के तरीक़ों को नहीं बदला है।
मैं आशा करता हूँ कि मेरे आलोचकों को अब यह स्पष्ट होगया होगा कि इंग्लैण्ड और फ्रांस के प्रति मेरी सहानुभूति मेरे आवेश या उन्माद के प्रमाद का परिणाम नहीं है। वह तो अहिंसा के उस कभी न सूखनेवाले फव्वारे से निकली है जिसे पिछले पचास सालों से मेरा हृदय पोसता आया है। मैं यह दावा नहीं करता कि मेरे निर्णय में कोई ग़लती नहीं हो सकती। मैं तो सिर्फ यही दावा करता हूँ कि इंग्लैण्ड और फ्रांस के प्रति मेरी जो सहानुभूति है वह युक्तियुक्त है। जिस आधार पर मेरी सहानुभूति है उसे जो लोग स्वीकार करते हैं उन्हें मैं अपना साथ देने के लिए आमंत्रित करता हूँ। यह दूसरी बात है कि उसका रूप क्या होना चाहिए? अकेला तो मैं केवल प्रार्थना ही कर सकता हूँ। वाइसराय से भी मैंने यही कहा है कि युद्ध में शरीक लोगों को सर्वनाश का जो मुक़ाबला करना पड़ रहा है उसके सामने मेरी सहानुभूति का कोई ठोस मूल्य नहीं है।