मानसिक शक्ति/३–विचार शक्ति जादू है

मानसिक शक्ति
जेम्स एलन, अनुवादक बाबू चेतन दास
३. विचार शक्ति जादू है

लखनऊ: हिंदी साहित्य भंडार, पृष्ठ १३ से – १७ तक

 

संसार में सब से बड़ी शक्ति जहां तक मनुष्य का सम्बंध है विचार शक्ति है। विचार के कारण ही मनुष्य श्रेष्ठ बन जाता है और इसी के कारण वह नीच और अर्धम हो जाता है। मनुष्य ऐसा ख्याल करता हैं कि उनकी उन्नति और अपने साथियों से आदर व सत्कार किसी शक्तिवान व्यक्ति की कृपा से या परस्थितियों के द्वारा प्राप्त होता है परंतु ऐसा नहीं है। जो ऐसा ख्याल करते हैं यह उनकी बड़ी भारी भूल है। जैसे मनुष्य अपने विचार प्रकट करता है उसी के अनुसार उसकी उन्नति या अवनति देखी जाती है और उसी के अनुसार उसमें आत्मबल पाया जाता है।

"मनुष्य अपने विचारों का फल है" इस बात को महर्षियों ने, कई युग हुए, कह दिया था; परंतु बड़ा ही अचरज है कि इतना भारी समय बीत गया; परंतु इस विचित्र सत्यता का पता बहुधा मनुष्यों को नहीं लगा। हम ने विचित्र इसको इस लिए कहा है कि इसका सम्पूर्ण अर्थ विचित्र है मनुष्य अपनी वसौती, स्थिति, वंशावली, बाह्यक्षेत्र और कुछ बाह्य शक्ति का जिस पर वह अपने जीवन, चरित्र, सौभाग्य और दुर्भाग्य का भार सौंपते हैं, विचार सैकड़ों वर्षों से करता चला आता है। अपने जीवन में पूर्णता प्राप्त करने के लिए मनुष्य कभी इस वस्तु को दोष देते हैं और कभी उसको और सदा अपने बाहर उसके कारणों को ढूँढ़ा करता है, किंतु बात यही है कि अपने भाग्य के बनाने वाले स्वयं आप हैं। प्रत्येक समय मनुष्य अपने आप को बनाते रहते हैं। मूर्ख अविश्वासी व्यक्ति भी अपने ही विचारों का उत्पादन है।

मनुष्य केवल अपने ही नीच, घृणित और बुरे विचारों के कारण नीच, घृणित और बुरा बन जाता है कमज़ोर और अस्थिर विचारों के कारण मनुष्य निर्बल और चल-प्रवृति बन जाता है। यदि तुम किसी दिन कहीं पर भी मनुष्यों के हृदयस्थ विचारों का पता लगाना चाहते हो तो उनके चेहरे को देखकर फौरन पता लगा सकते हो कि यह मनुष्य अच्छे विचार वाला है या बुरे।

उदास चेहरे को देखो जिसके पीछे दिमाग़ है जिसमें एक के पीछे एक मूर्खता के विचार उठते हैं और ग्रीष्म ऋतु के बादलों की भाँति भागते हुए चले जाते हैं। कोई भी विचार क्षण भर के लिए भी नहीं ठहरता एक ओर से आता है और दूसरी ओर चला जाता है।

यदि तुम किसी उदास और हततेज चेहरे की ओर देखो जो कि भोग विलासों और बुरी आदतों के कारण बिगड़ गया है तो तुम फौरन उसमें रहने वाले विचारों का ठीक ठीक पता लगा सकते हो।

लेकिन किसी-किसी का यह भी कहना है, कि मुख देख मनुष्य के अन्तर्गत विचारों का पता लगाने में कभी-कभी भूल होना सम्भव है; परंतु मेरे ख्याल से कभी भी भूल नहीं हो सकती। पवित्र और उत्तम विचार का कभी बदमाश जैसा चेहरा नहीं हो सकता और न आत्म त्याग और संयम से शराबी जैसा चेहरा हो सकता है। प्रकृति में कभी भूल नहीं देखी जाती। हमको उसका कौड़ी-कौड़ी बदला चुकाना पड़ता है।

क्या अच्छा हो यदि एक एक पुरुष को पकड़े और उनसे कहें, देखो भाई, तुम्हारे पास पारस पथरी है और इस अमूल्य शक्ति की सहायता से जो कि तुम्हारे पास है, तुम अपने जीवन की कुल नीच धातुओं को स्वर्ण में परिवर्तित कर सकते हो।

हां तभी तो अगर कोई यह कर सके। यदि किसी ने कभी ऐसा किया हो तो पागलपन समझा जाएगा, परंतु यह सत्य है कि मनुष्यत्व में यह द्योतक और परिवर्तन करने वाली शक्ति है। परन्तु शोक है कि वे ये नहीं जानते।

जिस बात को नेता और शिक्षक लोग नहीं जानते, भला उसको अन्य पुरुष कैसे जान सकते हैं। प्रत्येक सभा सोसायटी और गिर्जाघर में यह बात अवश्य सुनने में आती है कि यह करो, वह करो, परंतु उस अमूल्य रत्न के बाबत कुछ भी सुनाई नहीं देता जोकि हमारे हृदय में छिपा हुआ है और उसको पहिचानने की आवश्यकता है।

मुझे प्राय: इस पर बड़ा अचम्भा होता है कि क्या फल होगा यदि कुछ साहसी धर्म गुरु अपना साधारण उपदेश देने के बजाय जिसका लोगों पर बहुत ही कम प्रभाव पड़ता है यदि जोर के साथ यह कहें, 'घर जाओ और विचार करो' यह कितनी बड़ी शिक्षा होगी।

मनुष्यों को विचार करने का ढंग बतलाना चाहिए इसकी बड़ी आवश्यकता है। यह विचार तो सीधा है परंतु जब जनता के लिए इस नियम का उपयोग किया जाता है तो यही सबसे बड़ी आपत्ति उपस्थित होती है। मनुष्य कब देखेंगे और जानेंगे कि उनकी सफलता कार्य में नहीं है बल्कि कार्य की विधि में और विचार ही विधि है।

मनुष्य वैसा ही होगा जैसा उसका विचार होगा किसी बात के ऊपर गम्भीर और पूर्ण विचार करो। यदि तुम ऐसा करोगे तो तुम्हारे मस्तक में विशेष प्रकार के विचार के लिए स्थान बन जाएंगे। यदि तुम्हारे विचार गन्दे और तुच्छ होंगे तो उस समय उस स्थान को दूर करके बुरे विचार से छुटकारा पाना कठिन जान पड़ेगा। जो विचार बार बार मस्तक में उठा करता है वह लोहे की कड़ी के समान है जो तुम्हें दृढ़ता से उस वस्तु के साथ जकड़ता है जिसका तुमने विचार किया है। यदि तुम्हारे विचार गन्दे और घृणित हैं तो जितने बुरे और घृणित वे हैं उतने ही नीच और घृणित तुम हो जाओगे। इससे तुम बच नहीं सकते। यदि तुम्हारे विचार पवित्र शुभ और अच्छे हैं, तुम सभ्य बन जाओगे, फिर तुम बिगड़ नहीं सकते। जैसा मनुष्य विचारता है उसी के अनुसार वह बन जाता है।