मानसिक शक्ति/२–मन की उत्पादन शक्ति
"सत्यता को जानकर तुम्हारे हृदय को फिर भ्रम का दुख नहीं उठाना पड़ेगा क्योंकि वस्तु-स्वरूप जानने से इस बात का पता लग जाएगा कि सब पदार्थ तुम्हारे आधीन हैं"।
मनुष्य में उत्पादनशक्ति क्या वस्तु है? केवल विचार शक्ति। विचार करना क्या है? उत्पादन है। इस प्रकार हम जीवन पर्यन्त उत्पादक रहे हैं वरन हमें इसका कुछ भी पता नहीं। हमने समझा था कि उत्पन्न करने की शक्ति कोई अद्भुत और अनोखी वस्तु होगी जिसको कि हम बड़ी खोज के बाद किसी दिन बाहर से पाकर ग्रहण करेंगे। हम यह नहीं जानते थे कि जिस वस्तु की तलाश में हम बहुत दिनों से थे वह हम में सदैव से मौजूद है और हर समय हमारे साथ रहती है। बात केवल इतनी है कि समुदायरूप शक्ति होने, उचित रीति से काम में लाए जाने और मतलब के लिए काम में लगने के बजाए जल-प्रपात की भांति वह निरन्तर नष्ट होती रही, वह उत्पादन शक्ति होते हुए भी हमारे जीवन को निरर्थक और बेकार बनाये रही। दिन आया, दिन गया, ईश्वर ने एतवार छुट्टी का दिन दिया इत्यादि प्रकार का जीवन रह गया। अन्य समय में जब हम इसको काम में लाए भी तो बुरे कामों में। हमने अपने मन को रोग और शोक में, दुःख और विपत्ति में, पश्चात्ताप और प्रलाप में लगाया। मानो ये मनुष्य के भाग्य में ही हैं। वास्तव में हमने स्वयं इन चीजों को पैदा किया और विचार की उत्पादन शक्ति द्वारा अपनी ओर आकर्षित कर लिया। मन उत्पादक है। इस कथन की सत्यता जितनी हम माने उतने ही अच्छे अच्छे विचार और योगावस्था हम उत्पन्न करेंगे; परन्तु यदि मन द्रुतगामी घोड़े को भांति हो जो दाँतो के बीच लगाम होने पर भी क्रोध और अहंकार भय और भ्रम के कारण वेग से दौड़ा चला जा रहा है, तो उससे उसकी भी वैसी ही अवस्था हो जाएगी; कषाय से दुःख और रोग उत्पन्न होगा। क्रोध से आत्मा क्रूरता और शरीर में कठोरता आती है जिससे जीवन महा दुखमयी हो जाता है और विपत्ति और रोग का कारण होता है। भय और घबराहट से काम में असफलता और दरिद्रता का चित्र सामने आता है और यह समझने लगता है कि मैं अभागी हूँ, निर्धनी हूँ। फिर इस विचार का उसके जीवन पर प्रभाव पड़ता है।
एक बार एक छोटा सा जल-प्रपात किसी पहाड़ी से नीचे बह रहा था। इसका उद्गम उस पहाड़ी के ऊपर था और इसका जल नीचे बहकर समुन्दर की ओर जा रहा था। उसको बहते हुए युग व्यतीत हो गए परन्तु किसी को इस बात का ज्ञान स्वप्न में भी न हुआ कि पानी की उस धारा में कोई शक्ति छिपी हुई है। एक दिन एक व्यक्ति ने, जो अपने मित्रों से शान में कुछ बढ़ा चढ़ा था, यह देखा कि उसमें एक शक्ति छिपी हुई है इसलिए उसका बहाव नियम पूर्वक अपने अधीन किया जाए, ऐसा विचार कर उसने इस कार्य को अपने हाथ में लिया और उस पर बांध बनाए और जलाशय बंधवाए। उसने इन्जिनयर बनवाए और पानी उठाने के लिए पाहिए खड़े किये। फिर क्या था उस छोटे चश्मे ने जो कि शताब्दियों से पहाड़ के नीचे निरर्थक बह रहा था, एक महान् शक्ति धारण की। उससे अब कितनी ही आटा चक्की चलने लगी, बड़े बड़े गहिरे जलाशयों में पानी जमा करके लोगों को पहुंचाया जाने लगा और उसी के ज़ोर से बिजली की शक्ति भी पैदा की गई जिससे शहरों की गलियां और मकान रोशन हुए। इन सबका प्रधान कारण एक वही व्यक्ति था जिसने कुछ विचार करने का कार्य किया था। हज़ारों मनुष्यों ने यह जल-प्रपात देखा परन्तु कुछ न देखा। हाँ एक मन था जिसने वह धारा देखी और उसकी अव्यक्त शक्ति और उस शक्ति का प्रयाेग और कार्य देखा; उसने देखा कि शताब्दियों से एक बड़ी काम देनेवाली वस्तु निरर्थक पड़ी है और राह देख रही है कि मनुष्य मुझको जाने, उसके मनके चित्र ने उस वस्तु को उत्पन्न किया जिसका वह चित्र थी। इसी प्रकार मन भी सोते की भांति चलता रहता है और जीवन की पहाड़ी से नीचे उतरते हुए अपने आप को नष्ट कर रहा है और मन के स्वामी को पता नहीं है कि मैं किस शक्ति का स्वामी हू; परन्तु इतस्ततः कुछ स्त्री पुरुष सचेत हो रहे हैं और विचार करना प्रारम्भ कर रहे हैं। वे प्रश्न करते हैं, प्रकाश की खोज में हैं। वे इस बात को समझ रहे हैं कि मनुष्य आत्मा का आदमत्व क्या है और यह समझ रहे हैं कि मैं क्या हूँ? और इसका फल यह है कि वे सुखी और आनन्दित करने के लिए उत्पाद-शक्ति को प्रयोग में लाने का उद्योग कर रहे हैं। अब उन्हें मालूम हो रहा है कि वे जीवन समुद्र में बहते हुए काष्ट की भाँति भाग्य और परस्थितियाँ रूपी लहरों के आधीन नहीं हैं। उन्हें मालूम हो गया है कि हम अपने भाग्य और बाह्रय परस्थितियों के निर्माता स्वयं ही हैं और हमी अपने विचार-स्रोत पर पूर्ण अधिकार रखते हैं। हमही उनके मार्ग को अपनी इच्छानुसार बदल सकते हैं; हमही खराबी को दूर कर सकते हैं और उसको सदमार्गों पर लगा सकते हैं। वे यह मालूम करने लगे हैं कि हमारे भीतर एक शक्ति विद्यमान है जिसको उचित मार्ग पर लगाने से हमें सब प्रकार का सुख और शांति मिल सकती है।
जब मनुष्य को इस सत्यता का पता लग जाता है तो उसे कैसी खुशी होती है। इस बात के जानने के आनन्द का क्या कहना कि हमारा जीवन भी उतना ही अच्छा और उत्तम बन सकता है जितना कि हमारे पड़ोसियों का है। हमारे नेत्र खुल गए हैं और अब हम देख सकते हैं कि हम निर्धन केवल इस कारण से रहे हैं कि हमने उस भलाई को नहीं प्राप्त किया जोकि हमारे चारों ओर थी। ठीक बात है उस समय हमारे नेत्र ऊपर को उठे हुए थे इससे हमने उसको स्वप्न में भी नहीं देखा। हमने एक बार भी इस बात पर विचार नहीं किया कि सूर्य का प्रकाश हमारे लिए परिमित है या नहीं जब कि दूसरे उस की जीवन-प्रद-रश्मियों का भण्डार रखते हैं। हम जानते हैं कि सूर्य सब के लिए प्रकाशित होता है और जितनी उष्णता और ज्योति की हमें ज़रूरत है, हम उससे पा सकते हैं। हमें इस बात का स्वप्न में भी विस्मय नहीं हुआ कि वायु जिसमें कि हम स्वांस लेते हैं, कहां से आती है। उसके बिना हम एक क्षण भी जीवित नहीं रह सकते। जिस भोजन और जल की हमें आवश्यकता होती है उस पर भी कुछ विचार नहीं करते हैं। कैसा आनन्द हो यदि हम जान जावें कि केवल सब हवा ही हमारी नहीं है जिसकी हमको आवश्यकता है; यह धूप ही हमारी नहीं है और यह अन्न जल भी हमारा ही है किंतु इतना ही और इसी प्रकार हर एक लाभदायक कार्यकारी वस्तु भी हमारी है।
जिस किसी की हमें इच्छा है और जिस वस्तु का भी हमारा मन इच्छा करता है, जो कुछ भी भलाई हम हमारे साथ चाहते हैं, जिस किसी भी पद पर हम पहुंचना चाहते हैं वह सब हमारा है। अर्थात् मेरा भी और आपका भी। और यदि हम विचार पूर्वक रहें, सचेत होकर रहें; जोश के साथ रहें और दृढ़ता से रहें तो इन बातों का हमारे जीवन पर प्रभाव पड़ेगा क्योंकि किसी ने कहा है कि, "जाको जापर सत्य सनेहू, सो तिहि मिलत न कछु सन्देहू"।