महात्मा शेख़सादी
प्रेमचंद

कलकत्ता: हिन्दी पुस्तक एजेन्सी, पृष्ठ ९ से – १३ तक

 

दूसरा अध्याय
शिक्षा


उस समय शीराज़ से बुग़दाद की यात्रा बहुत कठिन थी। क़ाफ़िले चला करते थे। सादी भी एक क़ाफ़िले के साथ हो लिये। उनके घर पर जो माल असबाब था वह सब उन्होंने मित्रों और गरीबों की भेंट कर दिया। केवल एक 'कुरान,' जो उनको उनके आदि गुरु ने दी थी, अपने पास रख ली। इससे विदित होता है कि वह कैसे त्यागी और साहसी पुरुष थे। मार्ग में बीमार पड़ जाने के कारण उनका साथ क़ाफ़िले वालों से छूट गया। लेकिन वह अकेले ही चल खड़े हुए। जिस गांव में वह ठहरे थे वहां लोगों ने समझा था कि आगे का मार्ग बहुत विकट है, किन्तु सादी के पास क्या रखा था कि वह चोरों से डरते। थोड़ी ही दूर गये थे कि डाकुओं से उनका सामना हो गया। सादी ने उन से विनयपूर्वक कहा कि मैं ग़रीब विद्यार्थी हूं, विद्योपार्जन के लिए बुग़दाद जा रहा हूं, मेरे पास शरीर पर के कपड़ों और इस क़ुरान के सिवाय और कुछ नहीं है। यदि तुम्हारा जी चाहे तो इन वस्तुओं को लेजाओ, लेकिन कृपा करके इनका दुरुपयोग मत करना; किसी गरीब विद्यार्थी को दे देना। सादी के इस कथन का यह असर हुआ कि डाकू लज्जित हो गये और सदैव के लिए उन्होंने इस कुमार्ग को छोड़ने का संकल्प कर लिया। उनमें से दो आदमी सादी की रक्षा के लिए साथ चले। सद्‌व्यवहार में कितना प्रभाव है, यह इस घटना से भली भांति प्रमाणित होजाता है। लेकिन ईश्वर को स्वीकार था कि इस यात्रा में सादी को ईश्वरीय न्याय और दण्ड का अनुभव हो जाय। उसके दोनों साथियों में से एक को तो सांप ने काट खाया और दूसरा एक पेड़ पर से गिर कर मर गया। दोनों ने बड़े कष्ट से एड़ियां रगड़ कर जान दी। उनके जीवन के इस दुष्परिणाम ने सादी के हृदय पर गहरा असर डाला और उसने निश्चय कर लिया कि कभी किसी को कष्ट न दूंगा और यथासाध्य दूसरों के साथ दया का व्यवहार करूंगा।

बुग़दाद उस समय तुर्क साम्‌राज्य की राजधानी था। मुसलमानों ने बसरा से लेकर यूनान तक विजय प्राप्त कर ली थी और सम्पूर्ण एशिया ही में नहीं, यूरुप में भी उनका सा वैभवशाली और कोई राज्य नहीं था। इसी समृद्धिशाली राज्य का निवासस्थान था। राजा विक्रमादित्य के समय में उज्जैन की और मौर्य्यवंश के राज्य-काल में पाटलिपुत्र की जो उन्नति थी वही इस समय बुग़दाद की थी। बुग़दाद के बादशाह ख़लीफ़ा कहलाते थे। रौनक़ और आबादी में यह शहर शीराज़ से कहीं चढ़ बढ़ कर था। यहां के कई ख़लीफ़ा बड़े विद्याप्रेमी थे। उन्होंने सैकड़ों विद्यालय स्थापित किये थे। दूर दूर से विद्वान् लोग पठन-पाठन के निमित्त आया करते थे। यह कहने में अत्युक्ति न होगी कि बुग़दाद का सा उन्नत नगर उस समय संसार में नहीं था। बड़े बड़े आलिम, फ़ाज़िल, मौलवी, मुल्ला, विज्ञानवेत्ता और दार्शनिकों ने जिनकी रचनायें आज भी गौरव की दृष्टि से देखी जाती हैं बुग़दाद ही के विद्यालयों में शिक्षा पाई। विशेषतः "मदरसा निज़ामियां वर्तमान आक्सफोर्ड या बर्लिन की युनिवर्सिटियों से किसी तरह कम न था। सात आठ सहस्र छात्र उसमें शिक्षालाभ करते थे। उसके अध्यापकों और अधिष्ठाताओं में ऐसे ऐसे लोग होगये हैं जिनके नाम पर मुसलमानों को आज भी गर्व है। इस मदरसे की बुनियाद एक ऐसे विद्याप्रेमी ने डाली थी जिसके शिक्षाप्रेम के सामने कारनेगी भी शायद लज्जित हो जायं। उसका नाम 'निज़ामुलमुल्कतूसी' था। 'जलालुद्दीन सलजूक़ी' के समय में वह राज्य का प्रधान मन्त्री था। उसने बुग़दाद के अतिरिक्त वसरा, नेशापुर, इसफहान आदि नगरों में भी विद्यालय स्थापित किये थे। राज्यकोष के अतिरिक्त अपने निज के असंख्य रुपये शिक्षोन्नति में व्यय किया करता था। 'निज़ामियां' मदरसे की ख्याति दूर दूर तक फैली हुई थी। सादी ने इसी मदरसे में प्रवेश किया। यह निश्चय नहीं है कि वह कितने दिनों बुग़दाद में रहा। लेकिन उसके लेखों से ज्ञात होता है कि वहां []*फ़िक़ह, हदीस आदि के अतिरिक्त उसने विज्ञान, गणित, खगोल, भूगोल, इतिहास आदि विषयों का अच्छी तरह अध्ययन किया और "अल्लामा" की सनद प्राप्त की। इतने गहन विषयों में सिद्धहस्त होने के लिए सादी को १० वर्षों से कम न लगे होंगे।

काल की गति विचित्र है। सादी ने बुग़दाद से जब प्रस्थान किया तो उस समय उस नगर पर लक्ष्मी और सरस्वती दोनों ही की कृपा थी। लेकिन लगभग पचास वर्ष के पश्चात् उसने उसी समृद्धि-शाली नगर को हलाकू खां के हाथो नष्टभ्रष्ट होते देखा और अन्तिम् ख़लीफ़ा जिसके दर्बार में बड़े बड़े राजा और रईसों की भी मुश्किल से पहुंच होती थी बड़े अपमान और क्रूरता के साथ मारा गया।

सादी के हृदय पर इस घोर विप्लव का ऐसा प्रभाव पड़ा कि उसने अपने लेखों में बारम्बार राजाओं को नीति की रक्षा, प्रजापालन, तथा न्यायपरता का उपदेश दिया है। उसका विचार था, और उसके यथार्थ होने में कोई सन्देह नहीं, कि न्यायप्रिय, प्रजाभक्त राजा को कोई शत्रु पराजित नहीं कर सकता। जब इन गुणों में कोई अंश कम होजाता है तभी उसे बुरे दिन देखने पड़ते हैं। सादी ने दीनों पर दया, दुःखियों से सहानुभूति, देश भाइयों से प्रेम आदि गुणों का बड़ा महत्व दर्शाया है। कोई आश्चर्य्य नहीं कि उसके उपदेशों में जो सजीवता देख पड़ती है वह इन्हीं हृदयविदारक दृश्यों से उत्पन्न हुई हो।

 

  1. * फिकह—धर्मशास्त्र। हदीस—पुराण।