भ्रमरगीत-सार/९४-ऊधो! जान्यो ज्ञान तिहारो

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १२३

 

राग धनाश्री
ऊधो! जान्यो ज्ञान तिहारो।

जानै कहा राजगति-लीला अंत अहीर बिचारो॥
हम सबै अयानी, एक सयानी कुबजा सों मन मान्यो।
आवत नाहिं लाज के मारे, मानहु कान्ह खिस्यान्यो[]
ऊधो जाहु बाँह धरि ल्याओ सुन्दरस्याम पियारो।
ब्याहौ लाख, धरौं[] दस कुबरी, अंतहि कान्ह हमारो॥
सुन, री सखी! कछू नहिं कहिए माधव आवन दीजै।
जबहीं मिलैं सूर के स्वामी हाँसी करि करि लीजै॥९४॥

  1. खिस्यान्यो=लजाया।
  2. धरौं=रखे, बैठा ले।