भ्रमरगीत-सार/८-उद्धव! बेगि ही ब्रज जाहु

भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ८८ से – ८९ तक

 

राग नट
उद्धव! बेगि ही ब्रज जाहु।

सुरति सँदेस सुनाय मेटो बल्लभिन[] को दाहु॥

काम पावक तूलमय तन बिरह-स्वास समीर।
भसम नाहिन होन पावत लोचनन के नीर॥
अजौं लौं यहि भाँति ह्वैहै कछुक सजग सरीर।
इते पर बिनु समाधाने क्यों धरैं तिय धीर॥
कहौं कहा बनाय तुमसों सखा साधु प्रबीन?
सूर सुमति बिचारिए क्यों जियैं जल बिनु मीन॥८॥

  1. बल्लभी=प्यारी।