भ्रमरगीत-सार/८८-ऊधो! क्यों राखौं ये नैन
ऊधो! क्यों राखौं ये नैन?
सुमिरि सुमिरि गुन अधिक तपत हैं सुनत तिहारों बैन॥
हैं जो मनोहर बदनचंद के सादर कुमुद चकोर।
परम-तृषारत सजल स्यामघन के जो चातक मोर॥
मधुप, मराल चरनपंकज के, गति-बिलास-जल मीन।
चक्रबाक, मनिदुति दिनकर के, मृग मुरली आधीन॥
सकल लोक सूनो लागतु है बिन देखे वा रूप।
सूरदास प्रभु नँदनंदन के नखसिख अंग अनूप॥८८॥