भ्रमरगीत-सार/६५-नाहिंन रह्यो मन में ठौर

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ११३

 

राग केदारो
नाहिंन रह्यो मन में ठौर।

नंदनंदन अछत, कैसे आनिए उर और?
चलत, चितवत, दिवस जागत, सपन सोवत राति।
हृदय तें वह स्याम मूरति छन न इत उत जाति॥
कहत कथा अनेक ऊधो लोक-लाभ दिखाय।
कहा करौं तन प्रेम-पूरन घट न सिंधु समाय॥
स्याम गात सरोज-आनन ललित अति मृदु हास।
सूर ऐसे रूप-कारन मरत लोचन प्यास॥६५॥