भ्रमरगीत-सार/६२-काहे को रोंकत मारग सूधो

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ११२

 

राग बिलावल
काहे को रोंकत मारग सूधो?

सुनहु, मधुप! निर्गुन-कंटक तें राजपंथ क्यों रूँधो[]?
कै तुम सिखै पठाए कुब्जा, कै कहीं स्यामघन जू धौं।
बेद पुरान सुमृति सब ढ़ूँढ़ौ जुवतिन जोग कहूँ धौं?
ताको कहा परेखो[] कीजै जानत छाछ न दूधो।
सूर मूर अक्रूर गए लै ब्याज निबेरत[] ऊधो॥६२॥

  1. रूँधो रोकते हो, छेकते हो।
  2. परेखो=विश्वास।
  3. निबेरत=निबटाते हैं, वसूल करते हैं।