भ्रमरगीत-सार/३८-बिलग जनि मानहु, ऊधो प्यारे

भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १०३

 

बिलग जनि मानहु, ऊधो प्यारे!

वह मथुरा काजर की कोठरि जे आवहिं ते कारे॥
तुम कारे, सुफलकसुत कारे, कारे मधुप भँवारे।
तिनके संग अधिक छबि उपजत कमलनैन मनिआरे[]
मानहु नील माट[] तें काढ़े लै जमुना ज्यों पखारे।
ता गुन स्याम भई कालिंदी सूर स्याम-गुन न्यारे॥३८॥

  1. मनिआर=सुहावन, रीनक।
  2. माट=मटका, मिट्टी का बरतन।