बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १०३
वह मथुरा काजर की कोठरि जे आवहिं ते कारे॥ तुम कारे, सुफलकसुत कारे, कारे मधुप भँवारे। तिनके संग अधिक छबि उपजत कमलनैन मनिआरे[१]॥ मानहु नील माट[२] तें काढ़े लै जमुना ज्यों पखारे। ता गुन स्याम भई कालिंदी सूर स्याम-गुन न्यारे॥३८॥