भ्रमरगीत-सार/३७९-हौं तुम पै ब्रजनाथ पठायो

[ २२३ ]

उद्धव-गोपी-संवाद
उद्धव-वचन
राग सारंग

हौं तुम पै ब्रजनाथ पठायो। आतमज्ञान-सिखावन आयो॥
आपुहि पुरुष, आपुही नारी। आपुहि बानप्रस्थ ब्रतधारी॥
आपुहि पिता, आपुही माता। आपुहि भगिनी, आपुहि भ्राता॥
आपुहि पंडित, आपुहि ज्ञानी। आपुहि राजा, आपुहि रानी॥
आपुहि धरती, आपु अकासा। आपुहि स्वामी, आपुहि दासा॥
आपुहि ग्वाल, आपुही गाई। आपुहि आप चरावन जाई॥
आपुहि भँवर, आपुही फूल। आतमज्ञान बिना जग भूल॥
रंक राव दूजो नहिं कोय। आपुहि आप निरंजन सोय॥
यहि प्रकार जाको मन लागै। जरा, मरन, जी तें भ्रम भागे॥

गोपी-वचन

सुनु ऊधो! ह्याँ कौन सयानी?। तुम तौ महापुरुष बड़ज्ञानी॥
जोगी होय सो जोगहि जानै। नवधा भक्ति सदा मन मानै॥
भाव-भगति हरिजन चित धारे। ज्योति-रूप सिव सनक बिचारे॥
तुम कह रचि रचि कहत सयानी[१]। अबला हरि के रूप दिवानी॥
जात[२]-पीर बंझा नहिं जानै। बिनु देखे कैसे रुचि मानैं?
फिरि फ़िरि कहे वहै सुधि आवै। स्यामरूप बिनु और न भावै॥

[ २२४ ]

जोग-समाधि जोति चित लावै। परमानंद परमपद पावै॥
नवकिसोर को जबहिं निहारैं। कोटि ज्योति वा छबि पै वारैं॥
सजल मेघ घनस्याम-सरीर। रूप ठगी हलधर के बीर[३]
सिर श्रीखंड[४], कुंडल, बनमाल। क्यों बिसरैं वै नयन बिसाल?
मृगमद[५] तिलक अलक घुँघरारे। उन मोहन मन हरे हमारे॥
भृकुटी बिकट, नासिका राजै। अरुन अधर मुरली कल बाजै॥
दाड़िम-दसन-दमक-दुति सोहै। मृदु मुसकानि मदन-मन मोहै॥
चारु चिबुक, उर पर गजमोती। दूरि करत उडुगन की जोती॥
कंकन, किंकिन, पदिक बिराजै। चलत चरन कल नूपुर बाजै॥
बन की धातु[६] चित्र तनु किये। वह छबि चुभि जु रही हम हिये॥
पीत बसन छबि बरनि न जाई। नखसिख सुंदर कुंवर कन्हाई॥
रूपरासि ग्वालन को संगी। कब देखैं वह रूप त्रिभंगी॥
जो तुम हित की बात सुनावौ। मदनगोपालहि क्यों न मिलावौ?

उद्धव-वचन

ताहि भजहु किन सबै सयानी? खोजत जाहि महामुनि ज्ञानी॥
जाके रूप-रेख कछु नाहीं। नयन मूँदि चितवहु चित माहीं॥
हृदय-कमल में जोति बिराजै। अनहद नाद निरंतर बाजै॥
इड़ा पिंगला सुखमन नारी[७]। सून्य सहज में बसैं मुरारी॥
मात पिता नहिं दारा भाई। जल थल घट घट रहे समाई॥
यहि प्रकार भव दुस्तर तरिहौ। जोग-पंथ क्रम क्रम अनुसरिहौ॥

गोपी-वचन
यह मधुकर! मुख मूँदहु जाई। हमरे चित बित[८] हरि यदुराई॥

  1. सयानी=चतुराई। ज्ञान की बात।
  2. जात=बच्चा जनने की।
  3. बीर=भाई।
  4. श्रीखंड=चंदन।
  5. मृगमद=कस्तूरी।
  6. बन की धातु=गेरू।
  7. नारी=नाड़ी।
  8. बित=वित्त, धन।