भ्रमरगीत-सार/३७६-यद्यपि मन समुझावत लोग

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ २२२

 

यद्यपि मन समुझावत लोग।
सूल होत नवनीत देखिकै मोहन के मुख-जोग॥
प्रात-समय उठि माखन-रोटी को बिन मांगे दैहै?
को मेरे बालक कुँवर कान्ह को छन छन आगो लैहै?
कहियो जाय पथिक! घर आवैं राम स्याम दोउ भैया।
सूर वहाँ कत होत दुखारी जिनके मो सी मैया॥३७६॥