भ्रमरगीत-सार/३६२-ऐसो माई एक कोद को हेतु

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ २१६

 

राग सारंग

ऐसो, माई[]! एक कोद[] को हेतु।
जैसे बसन कुसुँभ-रंग मिलि कै नेकुचटक पुनि सेत॥
जैसे करनि किसान बापुरो नौ नौ बाहैं देत[]
एतेहू पै नीर निठुर भयो उमगि आय सब लेत॥
सब गोपी भाखैं ऊधो सों, सुनियो बात सचेत।
सूरदास प्रभु जन तें बिछुरें ज्यों कृत राई रेत[]॥३६२॥

  1. माई=सखी के लिए संबोधन।
  2. कोद=ओर, तरफ।
  3. बाहैं देत=कई बाँह जोतता है।
  4. ज्यों कृत राई रेत=जैसे रेत या बालू में राई कर दी गई हो (रेत में बिखरी राई इकट्ठा करना असंभव होता है)।