भ्रमरगीत-सार/३५८-कहा भयो हरि मथुरा गए

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ २१५

 

राग सारंग

कहा भयो हरि मथुरा गए।
अब अलि! हरि कैसे सुख पावत तन द्वै भाँति भए[]
यहाँ अटक अति प्रेम पुरातन, ह्वाँ अति नेह नए।
ह्वाँ सुनियत नृप-वेष, यहाँ दिन[] देखियत बेनु लए॥
कहा हाथ पर्‌यो सठ अक्रूरहिं वह ठग-ठाट ठए।
अब क्यों कान्ह रहत गोकुल बिनु जोगन के सिखए॥
राजा राज करौ अपने घर माथे छत्र दए।
चिरंजीव रहौ, सूर नंदसुत, जीजत मुख चितए॥३५८॥

  1. द्वै भाँति भए=दो रूपों का एक साथ निर्वाह करना पड़ता है।
  2. दिन=प्रतिदिन, सदा।