भ्रमरगीत-सार/३५८-कहा भयो हरि मथुरा गए
राग सारंग
कहा भयो हरि मथुरा गए।
अब अलि! हरि कैसे सुख पावत तन द्वै भाँति भए[१]॥
यहाँ अटक अति प्रेम पुरातन, ह्वाँ अति नेह नए।
ह्वाँ सुनियत नृप-वेष, यहाँ दिन[२] देखियत बेनु लए॥
कहा हाथ पर्यो सठ अक्रूरहिं वह ठग-ठाट ठए।
अब क्यों कान्ह रहत गोकुल बिनु जोगन के सिखए॥
राजा राज करौ अपने घर माथे छत्र दए।
चिरंजीव रहौ, सूर नंदसुत, जीजत मुख चितए॥३५८॥