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भ्रमरगीत-सार/३४८-बिरही कहँ लौं आपु सँभारै
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भ्रमरगीत-सार
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३४७-तुमहिं मधुप गोपाल-दुहाई
भ्रमरगीत-सार
(1926)
द्वारा
रामचंद्र शुक्ल
३५३-ऊधो! धनि तुम्हरो ब्यवहार
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140001
भ्रमरगीत-सार
1926
रामचंद्र शुक्ल
[
२१२
]
राग सोरठ
बिरही कहँ लौं आपु सँभारै?
जब तें गंग परी हरिपद तें बहिबो नाहिं निवारै॥