भ्रमरगीत-सार/३४८-बिरही कहँ लौं आपु सँभारै

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ २१२

 

राग सोरठ
बिरही कहँ लौं आपु सँभारै?
जब तें गंग परी हरिपद तें बहिबो नाहिं निवारै॥