हमैं नंदनँदन को गारो[१]।
इन्द्रकोप ब्रज बह्यो जात हो, गिरि धरि सकल उबारो॥
रामकृस्न बल बदति न काहू, निडर चरावत चारो।
सगरे बिगरे को सिर ऊपर बल को बीर[२] रखबारो॥
तब तें हम न भरोसो पायो केसि तृनाब्रत मारो।
सूरदास प्रभु रङ्गभूमि में हरि जीतो, नृप हारो॥३१०॥