भ्रमरगीत-सार/३०-हमतें हरि कबहूँ न उदास

भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १००

 

राग धनाश्री
हमतें हरि कबहूँ न उदास।

राति-खवाय पिवाय अधररस सो क्यों बिसरत ब्रज को वास॥
तुमसों प्रेमकथा को कहिबो मनहुँ काटिबो घास।
बहिरो तान-स्वाद कह जानै, गूँगो बात-मिठास॥
सुनु री सखी, बहुरि फिरि ऐहैं वे सुख बिबिध विलास।
सूरदास ऊधो अब हमको भयो तेरहों मास[]॥३०॥

  1. तेरहों मास भयो=अवधि बीत गई, बहुत दिन हो गए।