भ्रमरगीत-सार/३०-हमतें हरि कबहूँ न उदास
हमतें हरि कबहूँ न उदास।
राति-खवाय पिवाय अधररस सो क्यों बिसरत ब्रज को वास॥
तुमसों प्रेमकथा को कहिबो मनहुँ काटिबो घास।
बहिरो तान-स्वाद कह जानै, गूँगो बात-मिठास॥
सुनु री सखी, बहुरि फिरि ऐहैं वे सुख बिबिध विलास।
सूरदास ऊधो अब हमको भयो तेरहों मास[१]॥३०॥
- ↑ तेरहों मास भयो=अवधि बीत गई, बहुत दिन हो गए।