भ्रमरगीत-सार/२९२-जाहि री सखी सीख सुनि मेरी
राग मलार
जाहि री सखी! सीख सुनि मेरी।
जहाँ बसत जदुनाथ जगतमनि बारक तहाँ आउ दै फेरी॥
तू कोकिला कुलीन कुसलमति, जानति बिथा बिरहिनी केरी।
उपवन बैठि बोलि मृदुबानी, बचन बिसाहि[१] मोहिं करु चेरी॥
प्रानन के पलटे[२] पाइय जस सेंति बिसाहु[३] सुजस ढेरी।
नाहिंन कोउ और उपकारी सब बिधि बसुधा हेरी॥
करियो प्रगट पुकार द्वार है अबलन्ह आनि अनँग अरि घेरी।
ब्रज लै आउ सूर के प्रभु को गावहिं कोकिल! कीरति तेरी॥२९२॥