भ्रमरगीत-सार/२८७-हरि न मिले री माई जन्म ऐसे ही लाग्यो जान

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १९०

 

राग टोडी

हरि न मिले री माई! जन्म ऐसे ही लाग्यो जान।
जोवत मग द्यौस द्यौस बीतत जुग-समान॥
चातक-पिक-बयन सखी! सुनि न परै कान।
चंदन अरु चंदकिरन कोटि मनो भानु॥
जुवती सजे भूषन रन-आतुर मनो त्रान[]
भीषण लौं डासि मदन अर्जुन के बान॥
सोवति सर-सेज सूर, चल न चपल प्रान।
दच्छिन-रबि-अवधि अटक इतनीऐ जान॥२८७॥

  1. त्रान=अंगत्राण, कवच।