भ्रमरगीत-सार/२५३-मधुकर देखि स्याम तन तेरो

भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १७६

 

राग केदारो

मधुकर! देखि स्याम तन तेरो।
हरि-मुख की सुनि मीठी बातैं डरपत है मन मेरो॥
कहत हौं चरन छुवन रसलंपट, बरजत हौ बेकाज।
परसत गात लगावत कुंकुम, इतनी में कछु लाज?
बुधि बिबेक अरु बचन-चातुरी ते सब चितै चुराए।
सो उनको कहो कहा बिसार्‌यो, लाज छाँड़ि ब्रज आए॥
अब लौं कौन हेतु गावत है हम आगे यह गीत।
सूर इते सों गारि[] कहा है जौ पै त्रिगुन अतीत?॥२५३॥

  1. गारि=बुराई।