भ्रमरगीत-सार/२४८-मधुकर यहाँ नहीं मन मेरो
राग सोरठ
मधुकर! यहाँ नहीं मन मेरो।
गयो जो सँग नंदनंदन के बहुरि न कीन्हो फेरो॥
लयो नयन मुसकानि मोल है, कियो परायो चेरो।
सौंप्यो जाहि भयो बस ताके, बिसर्यो बास-बसेरो॥
को समुझाय कहै सूर जो रसवस काहू केरो?
मँदे पर्यो, सिधारू अनत लै, यह निर्गुन मत तेरो॥२४८॥