भ्रमरगीत-सार/२४६-मधुकर कहियत बहुत सयाने

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १७३ से – १७४ तक

 

मधुकर! कहियत बहुत सयाने।
तुम्हरी मति कापै बनि आवै हमरे काज अजाने।

तैसोई तू, तैसो तेरो ठाकुर, एकहि बरनहि बाने।
पहिले प्रीति पिवाय सुधारस पाछे जोग बखाने॥
एक समय पंकजरस वासे दिनकर अस्त न माने।
सोइ सूर गति भइ ह्याँ हरि बिनु हाथ मीड़ि पछिताने॥२४६॥