भ्रमरगीत-सार/२३६-ऊधो! तुमहुं सुनौ इक बात
जो तुम करत सिखावन सो हमैं नाहिंन नेकु सुहात॥
ससि-दरसन बिनु मलिन कुमोदिनि ज्यों रवि बिनु जल जात।
त्यों हम कमलनयन बिन देखे तलफि तलफि मुरझात॥
घँसि चँदन घनसार सजे तन ते क्यों भस्म भरात?
रहे स्रवन मुरलीधर सों रत, सिंगी सुनत डरात॥
अबलनि आनि जोग उपदेसत नाहिंन नेकु लजात।
जिन पायो हरि परस सुधारस ते कैसे कटु खात?
अवधि-आस गनि गनि जीवति हैं, अब नहिं प्रान खटात[१]।
सूर स्याम हम निपट बिसारी ज्यों तरु जीरन पात॥२३६॥
- ↑ खटात=ठहरता है।