भ्रमरगीत-सार/२३५-ऊधो! कहियो सबै सोहती
ऊधो! कहियो सबै सोहती।
जाहि ज्ञान सिखवन तुम आए सो कहौं ब्रज में कोय ती?
अंतहु सीख सुनहुगे हमरी कहियत बात बिचारि।
फुरत[१] न बचन कछू कहिबे को, रहे प्रीति सों हारि॥
देखियत हौ करुना की मूरति, सुनियत हौ परपीरक[२]।[३]
सोय करौ ज्यों मिटै हृदय को दाह परै उर सीरक[४]॥
राजपंथ तें टारि बतावत उरझ कुबील कुपैंड़ो।
सूरदास[५] समाय कहाँ लौं अज के बदन कुम्हैड़ो?॥२३५॥