भ्रमरगीत-सार/२२२-ऊधो कहु मधुबन की रीति

भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १६५

 

राग मारू
ऊधो! कहु मधुबन की रीति।

राजा ह्वै ब्रजनाथ तिहारे कहा चलावत नीति?
निसि-लौं करत दाह दिनकर ज्यों हुतो सदा ससि सीति।
पुरवा पवन कह्यो नहिं मानत गए सहज बपु जीति॥
कुब्जा-काज कंस को मार्‌यो, भई निरंतर प्रीति।
सूर बिरह ब्रज भलो न लागत जहाँ ब्याह तहँ गीति॥२२२॥