बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १५६
राजकाज चित दियो साँवरे, गोकुल क्यों बिसर्यौ? जौ लौं घोष रहे तौ लों हम सँतत सेवा कीनी। बारक कबहुँ उलूखल परसे, सोई मानि जिय लीनी॥