भ्रमरगीत-सार/१८७-ऊधो कहिए काहि सुनाए
ऊधो! कहिए काहि सुनाए?
हरि बिछुरत जेती सहियत हैं इते बिरह के घाए॥
बरु माधव मधुबन ही रहते, कत जसुदा के आए?
कत प्रभु गोप-बेष ब्रज धार्यो, कत ये सुख उपजाए?
कत गिरि धारि इँद्र-मद मेट्यो, कत बन रास बनाए?
अब कह निठुर भए हम ऊपर लिखि लिखि जोग पठाए?
परम प्रबीन सबै जानत हौ, तातें यह कहि आए।
अपनी कौन कहै सुनु सूर मात-पिता बिसराए॥१८७॥