भ्रमरगीत-सार/१८५-ऊधो इन नयनन नेम लियो

भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १५४

 

राग मारू
ऊधो! इन नयनन नेम लियो।

नँदनंदन सों पतिव्रत बाँध्यो, दरसत नाहि बियो[]
इंदु चकोर, मेघ प्रति चातक जैसे धरन दियो।
तैसे ये लोचन गोपालै इकटक प्रेम पियो॥
ज्ञानकुसुम लै आए ऊधो! चपल न उचित कियो।
हरिमुख-कमल अमियरस सूर चाहत वहै लियो॥१८५॥

  1. बियो=दूसरा।