बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १५४
नँदनंदन सों पतिव्रत बाँध्यो, दरसत नाहि बियो[१]॥ इंदु चकोर, मेघ प्रति चातक जैसे धरन दियो। तैसे ये लोचन गोपालै इकटक प्रेम पियो॥ ज्ञानकुसुम लै आए ऊधो! चपल न उचित कियो। हरिमुख-कमल अमियरस सूर चाहत वहै लियो॥१८५॥