भ्रमरगीत-सार/१८३-ऊधो बहुतै दिन गए चरनकमल-बिमुख ही
दरस-हीन, दुखित दीन, छन छन विपदा सही॥
रजनी अति प्रेमपीर, गृह बन मन धरै न धीर।
बासर मग जोवत, उर सरिता बही नयननीर॥
आवन की अवधि-आस सोई गनि घटत स्वास।
इतो बिरह बिरहिनि क्यों सहि सकै कह सूरदास?॥१८३॥