भ्रमरगीत-सार/१७२-ऊधो जोग सिखावन आए

भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १५०

 

ऊधो जोग सिखावन आए।

सिंधी, भस्म, अधारी, मुद्रा लै ब्रजनाथ पठाए॥
जौपै जोग लिख्यो गोपिन को, कस रसरास खिलाए?
तबहिं ज्ञान काहे न उपदेस्यो, अधर-सुधारस प्याए॥
मुरली सब्द सुनत बन गवनति सुत पति गृह बिसराए।
सूरदास सँग छाँड़ि स्याम को मनहिं रहे पछिताए॥१७२॥