भ्रमरगीत-सार/१७२-ऊधो जोग सिखावन आए
सिंधी, भस्म, अधारी, मुद्रा लै ब्रजनाथ पठाए॥
जौपै जोग लिख्यो गोपिन को, कस रसरास खिलाए?
तबहिं ज्ञान काहे न उपदेस्यो, अधर-सुधारस प्याए॥
मुरली सब्द सुनत बन गवनति सुत पति गृह बिसराए।
सूरदास सँग छाँड़ि स्याम को मनहिं रहे पछिताए॥१७२॥