भ्रमरगीत-सार/१६०-ऊधो! हम ही हैं अति बौरी

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १४५

 

राग धनाश्री
ऊधो! हम ही हैं अति बौरी।

सुभग कलेवर कुंकुम खौरी। गुंजमाल अरु पीत पिछौरी॥
रूप निरखि दृग लागे ढोरी[]। चित चुराय लयो मूरति सो, री!
गहियत सो जा समय अंकोरी[]। याही तें बुधि कहियत बौरी॥
सूर स्याम सों कहिय कठोरी! यह उपदेस सुने तें बौरी॥१६०॥

  1. ढोरी लागे=सँग लगे, पीछे हो लिए।
  2. अंकोरी=गोद।