भ्रमरगीत-सार/१४८-मधुकर! हम जो कहौ करैं
पठयो है गोपाल कृपा कै आयसु तें न टरैं॥
रसना वारि फेरि नव खंड कै, दै निर्गुन के साथ।
इतनी तनक बिलग जनि-मानहुँ, अँखियाँ नाहीं हाथ॥
सेवा कठिन, अपूरब दरसन कहत अबहुँ मैं फेरि।
कहियो जाय सूर के प्रभु सों केरा पास ज्यों बेरि[१]॥१४८॥
- ↑ केरा......बेरि=बेर के पेड़ के पास रहने से केले के डाल-पत्तों में बराबर काँटे चुभते रहते हैं।