भ्रमरगीत-सार/१४२-मधुकर! तुम हौ स्याम-सखाई

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १३८

 

राग मलार
मधुकर! तुम हौ स्याम-सखाई।

पा लागों यह दोष बकसियो संमुख करत ढिठाई॥
कौने रंक संपदा बिलसी सोवत सपने पाई?
किन सोने की उड़त चिरैया डोरी बांधि खिलाई?
धाम धुआँ के कहौ कौन के बैठी कहाँ अथाई[]?
किन अकास तें तोरि तरैयाँ आनि धरी घर, माई!
बौरन की माला गुहि कौनै अपने करन बनाई?
बिन जल नाव चलत किन देखी, उतरि पार को जाई?
कौनै कमलनयन-ब्रत बीड़ो[] जोरि समाधि लगाई?
सूरदास तू फिरि फिरि आवत यामें कौन बड़ाई?॥१४२॥

  1. अथाई=बैठक, चौबारा।
  2. बीड़ो जोरि=बीड़ा उठाकर, प्रतिज्ञा करके।