भ्रमरगीत-सार/१४०-मधुकर! हम न होहिं वे बेली
ये बल्ली बिहरत बृंदावन अरुझीं स्याम-तमालहिं।
प्रेमपुष्प-रस-बास हमारे बिलसत मधुप गोपालहिं॥
जोग-समीर धीर नहिं डोलत, रूपडार-ढिग लागी।
सूर पराग न तजत हिये तें कमल-नयन-अनुरागी॥१४०॥
बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १३७ से – १३८ तक
ये बल्ली बिहरत बृंदावन अरुझीं स्याम-तमालहिं।
प्रेमपुष्प-रस-बास हमारे बिलसत मधुप गोपालहिं॥
जोग-समीर धीर नहिं डोलत, रूपडार-ढिग लागी।
सूर पराग न तजत हिये तें कमल-नयन-अनुरागी॥१४०॥