भ्रमरगीत-सार/१३१-ऊधो! जोग सुन्यो हम दुर्लभ

भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १३६

 

ऊधो! जोग सुन्यो हम दुर्लभ।

आपु कहत हम सुनत अचंभित जानत हौ जिय सुल्लभ॥
रेख न रूप बरन जाके नहिं ताकों हमैं बतावत।
अपनी कहो[] दरस वैसे को तुम कबहूँ हौ पावत?
मुरली अधर धरत है सो, पुनि गोधन बन बन चारत?
नैन बिसाल भौंह बंकट[] करि देख्यो कबहुँ निहारत?

  1. अपनी कहो=अपना हाल बताओ।
  2. बंकट=टेढ़ी, वक्र।