बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १३४ से – १३५ तक
जोग लेहु संभारि अपनो बेंचिए जहँ लाहु[१]॥ हम बिरहिनी नारि हरि बिनु कौन करै निबाहु? तहां दीजै मूर पूजै[२], नफा कछु तुम खाहु॥
जौ नहीं ब्रज में बिकानो नगरनारि बिसाहु। सूर वै सब सुनत लैहैं जिय कहा पछिताहु॥१२५॥