भ्रमरगीत-सार/१२३-ऊधो! स्यामसखा तुम सांचे
ऊधो! स्यामसखा तुम सांचे।
कै करि लियो स्वांग बीचहि तें, वैसेहि लागत कांचे।
जैसी कही हमहिं आवत ही औरनि कही पछिताते।
अपनो पति तजि और बतावत महिमानी कछु खाते[१]॥
तुरत गौन कीजै मधुबन को यहां कहां यह ल्याए?
सूर सुनत गोपिन की बानी उद्धव सीस नवाए॥१२३॥
- ↑ महिमानी खाते=सत्कार पाते अर्थात् खूब कोसे जाते।