भ्रमरगीत-सार/१२०-ऊधो! जोग बिसरि जनि जाहु

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १३३

 

राग सारंग
ऊधो! जोग बिसरि जनि जाहु।

बाँधहु गाँठि कहूँ जनि छूटै फिरि पाछे पछिताहु॥
ऐसी बस्तु अनूपम मधुकर मरम न जानै और।
ब्रजबासिन के नाहिं काम की, तुम्हरे ही है ठौर॥
जो हरि हित करि हमको पठयो सो हम तुमको दीन्हीं।
सूरदास नरियर ज्यों विष को करै बंदना कीन्हीं॥१२०॥